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2020 के अंत में ही कुछ प्रधानाध्यापकों के खिलाफ शिकायत मिली थी कि वे लोग अवैध डिग्री के आधार पर प्रधानाध्यापक बनकर नौकरी कर रहे हैं। इसके बाद शिकायत के आधार पर मामले की जांच की गई, जिसमें शिकायत सही पायी गई। इसके बाद इन प्रधानाध्यापकों को उनका पक्ष रखने को कहा गया था, लेकिन अधिकतर लोगों ने अपना पक्ष नहीं रखा। कुछ लोगों ने गलत तरीके से रखा।

2015 में मिली थी प्रोन्नति

जानकारी हो कि 2015 में ही जिले के करीब दौ सौ शिक्षकों को प्रोन्नति दी गई थी। इनमें से 33 शिक्षकों की डिग्री पर सवाल उठाते हुए शिकायत की गई थी कि इन शिक्षकों ने दूसरे राज्यों के बिहार स्थित केंद्रों से पीजी कर उसकी गलत जानकारी विभाग को दी है और उसका लाभ उठाया है। इन प्रधानाध्यापकों की डिग्री मान्य नहीं है। दरअसल, सरकारी सेवा में कार्य करते हुए एवं बिहार राज्य के अंदर रहते हुए उन संस्थनों के फ्रेंचाइजी द्वारा दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से राज्य के बाहर के शिक्षण संस्थानों या विश्वविद्यालयों से स्नातकोत्तर की योगयता प्राप्त की है और इसे यूजीसी मान्यता नहीं देता है।

फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर प्रोन्नति पाने वाले जिले के 33 प्रधानाध्यापक आज भी स्कूलों में उसी पद पर नौकरी कर रहे हैं। कई महीने पहले ही इनकी डिग्री अवैध साबित हो चुकी है। काफी लंबा वक्त खींच जाने से सवाल उठने लगे थे कि आखिर विभाग ने अभी तक इन लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं की है। अब जाकर जिला शिक्षा पदाधिकारी ने बुधवार को कहा कि एक सप्ताह में इनलोगों को हटा दिया जाएगा। 

2018 में शिक्षकों को नहीं मिली थी प्रोन्नति

2018 में भी इसी तरह से प्रोन्नति का मामला सामने आया, तब शिक्षकों को प्रोन्नति नहीं दी गई। इसे लेकर प्राथमिक माध्यमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष शेखर गुप्ता ने डीएम को शिकायत की थी इन शिक्षकों के साथ भेदभाव क्यों। इसपर तत्कालीन डीपीओ संजय कुमार ने यूजीसी के नियम का हवाला देते हुए इसे गलत बताया था और उस दौरान प्रोन्नति नहीं मिली। 

भागलपुर के जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार ने कहा, ‘रिपोर्ट मांगी गई थी, लेकिन रिपोर्ट नहीं आई। इस कारण यह टलता जा रहा था। एक सप्ताह में इसपर कार्रवाई करते हुए इनको पद से हटा दिया जायेगा। इन लोगों को प्रोन्नति तो मिली थी, लेकिन वित्तीय लाभ नहीं मिला था। इसलिए इनसे वेतन की वसूली तो नहीं की जायेगी।’