क्या आपको पता है कि बिहार में एक ऐसा भी गांव है जहां इंसान से लेकर जानवर तक गर्भ में ही दिव्यांग (Handicapped) हो जाते हैं और जब वो पैदा होते हैं तो आड़ी-तिरछी हड्डियों के साथ जो कि उनके जन्मजात दिव्यांगता (Handicapped By Birth) का कारण बनती है. इस गांव के अधिकांश लोगों की हड्डियां टेढ़ी हैं यही कारण है कि इस गांव के लोग धरती का नरक तक कहने से नहीं हिचकते.

ये गांव रोहतास जिला के सासाराम अनुमंडल क्षेत्र के शिवसागर से है गांव का नाम है बरुआ. इस गांव के  ज्यादातर लोगों की हड्डियां टेढ़ी हैं. इसका कारण है फ्लोराइड युक्त पानी. स्थिति यह है कि इंसान तो क्या, जानवर भी यहां गर्भ में अपंग हो जाते हैं. सबसे बड़ी बात है कि पिछले पांच दशक से लोग यहां नरक की जिंदगी जी रहे हैं. कारण यह है कि यहां के पानी में फ्लोराइड मिला हुआ है. जिस कारण लोगों की हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं.

बचपन में कुछ लोग ठीक-ठाक थे, लेकिन समय के साथ परिस्थिति ऐसी हुई कि कई लोग विकलांग हो गए. कुछ की स्थिति ऐसी हो गई कि चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया है. गांव के रामराज प्रसाद पहले फुटबॉलर हुआ करते थे, बाद में खड़े होने के काबिल तक नहीं रहे. कई लोग समय से पहले बूढ़े हो जा रहे हैं, तो कई बच्चों के उम्र ज्यादा होने के बावजूद शारीरिक विकास नहीं हो पा रहा है. कुसुम देवी की बेटी रेशम नामक बच्ची की उम्र 5 साल हैं. रेशम गर्भ में ही विकलांग हो गयी थी. यहां तक कि इसका ग्रोथ भी रुक गया है. 5 साल की बच्ची देखने में 6 महीना की लगती है.  गांव में दिव्यांग बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है. ज्यादातर बच्चे जन्म से पहले ही अपंग है. अगर ठीक-ठाक जन्म लिए तो कुछ साल के बाद दिव्यांगता के शिकार हो जाते हैं. इलाज कराने के बाद भी कोई उपाय नहीं है. डॉक्टर कहते हैं कि जब तक पानी में सुधार नहीं होगा, इन लोगों का कुछ नहीं हो सकता.

फेल हो गया वाटर ट्रीटमेंट प्लांट

इस गांव में वाटर ट्रीटमेंट के लिए बृहद पैमाने पर वाटर फ्यूरीफिकेशन प्लांट लगाया गया लेकिन रखरखाव के अभाव में इसका उपयोग नहीं हो सका. स्थिति यह है कि जल शोधक यंत्र कबाड़ा बन कर पड़ा है और लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. गांव में कई चापाकल तथा नल जल योजना के नल लगे हैं लेकिन पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है. लोगों ने कई बार किसकी सुधार के लिए आला अधिकारियों तक गुहार लगाया. लेकिन कहीं से सुधार की गुंजाइश नहीं हुई. ऐसी स्थिति में जो लोग सक्षम है, वह गांव छोड़ चुके हैं, और शहर में अपने बच्चों को रख कर उसे बचा रहे हैं. लेकिन ज्यादातर गरीब तबके के लोग गांव में रहकर गांव के दूषित पानी पीकर कई पीढ़ियों से बीमार होते जा रहे हैं. यह कहे कि अस्थि विकलांगता यहां अभिशाप बन कर रह गयी है. इस गांव में लोगों को लाठी के सहारे तो व्हीलचेयर पर घूमते आसानी से देख सकते हैं.

मवेशियों में भी है विकलांगता

सबसे बड़ी बात है कि दूषित पानी से इंसान तो क्या, मवेशी भी अस्थि विकलांगता के शिकार हैं. पशुपालक बताते हैं कि कई मवेशियों का तो गर्भपात भी हो जाता है. ज्यादातर मवेशी जन्म से ही मरे पैदा लेते हैं या फिर जन्म अगर ठीक-ठाक हुआ तो बाद में एक दो साल के उपरांत उसकी भी हड्डियां टेढ़ी होने लगती है. इस प्रकार से गांव में पिछले पांच दशक से अस्थि विकलांगता फैली है लोग इसे अभिशाप मानते हैं.

लोग बेटियों की नहीं कर रहे इस गांव में ब्याह

गांव की सामाजिक दशा इतनी बीमार हो गई है कि अब कोई अपनी बेटियों की शादी इस गांव में नहीं करना चाहता है. आसपास के गांव के लोग इस गांव को बीमार गांव के नाम से बुलाने लगे हैं. गांव में बाल बच्चों की शादी ब्याह भी मुश्किल हो गई है. इस परिस्थिति में बहुत से लोग शादी विवाह के लिए दूसरे जगह जा रहे हैं.

सक्षम लोग कर रहे पलायन

वैसे लोग जो कुछ सक्षम है. वह पूरा परिवार के साथ गांव छोड़ चुके हैं तथा सासाराम नगर में आकर रह रहे हैं. कई लोग अपने बच्चों को गांव में नहीं रख के सासाराम में किराए के मकान में रखकर पढ़ाई करा रहे हैं. जबकि गांव में पहले से ही विद्यालय है. लोगों का कहना है कि गांव का पानी इतना दूषित है कि आने वाली नस्लें भी खराब हो जाएंगी. इसलिए गांव छोड़ना ही बेहतर है. गांव के बलराम चौबे अपने घर में ताला बंद कर पूरा परिवार सासाराम में रह रहे हैं.