कोरोना की चौथी लहर व जेई पईएस से निपटने के लिए जिले के स्वास्थ्य महकमा दावा कर रहा है। लेकिन सच तो यह है कि जिले में 2011 की जनगणना के अनुसार 19 हजार की आबादी पर इलाज के लिए एकमात्र डॉक्टर कार्यरत हैं। यदि हम साल 2022 की बात करें तो जिले की करीब 40 लाख से अधिक आबादी है और कार्यरत डॉक्टरों की संख्या महज 220 है।

जिले में एमबीबीएस, दंत चिकित्सक व आयुष चिकित्सक मिलाकर महज 391 पद स्वीकृत हैं, जबकि आबादी के अनुसार 3500 डॉक्टरों की जरूरत है। पूर्व से स्वीकृत पद 391 के विरुद्ध 220 चिकित्सकों की ही प्रतिनियुक्ति की गई है। 171 चिकित्सकों के पद अब भी खाली पड़े हैं। जिले मे एक सदर अस्पताल, एक मेजरगंज रेफरल अस्पताल, 17 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व 42 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिसमें आम तौर पर जिले में करीब हजार रोगी हर रोज इलाज के लिए सदर अस्पताल से लेकर पीएचसी, एपीएचसी पहुंचते हैं। जिले के कई अस्पतालों में 24 घंटे चिकित्सक उपलब्ध नहीं रहते। नसों के लगभग 70 प्रतिशत पद खाली हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर 1000 की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए। अगर वर्तमान में जिले की आबादी का आंकड़ा 11 वर्ष पूर्व से ही लगाया जाए तो जिले मे 35 सौ चिकित्सकों की आवश्यकता होती है। इसके बदले में वर्तमान में जिले में मात्र 220 चिकित्सक ही प्रतिनियुक्त हैं। सदर अस्पताल में 76 के बदले 25 चिकित्सक ही ड्यूटी पर, 41 पद रिक्त : जिले में सदर अस्पताल के अलावा सात पीएचसी, 10 सीएचसी, दो अनुमंडलीय अस्पताल, एक सदर अस्पताल, एसएनसीयू एसएच, सीतामढ़ी, सिविल कोर्ट, मंडल कारा सीतामढ़ी में अस्पताल है। यही कारण है कि जिले में एम्स खोलने की मांग हो रही है। जिला अस्पताल का दर्जा प्राप्त सदर अस्पताल में चिकित्सक के कुल 76 पद स्वीकृत हैं। इनमें 25 ही डयूटी कर रहे हैं। 41 पद रिक्त पड़े हैं। इसकी वजह से यहां लोगों का इलाज मिलना मुश्किल होता है।

Dr Suresh Chandra Lal ने कहा की डाक्टर व कर्मी की कमी की वजह से ड्यूटी बांटने में काफी परेशानी होती है। विभाग को इसकी जानकारी दी गई है। चिकित्सक और नर्सों की बहाली की जा रही है। प्रक्रिया पूरा होने के बाद ही मानव बल बढ़ सकेगा।