भारत में पाकिस्तानी अल्पसंख्यक प्रवासियों के हक़ की आवाज़ उठाने वाली संस्था सीमांत लोक संगठन (एसएलएस) ने ये दावा किया है.

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने इस ख़बर को प्रमुखता से छापा है. अख़बार ने बताया है कि नागरिकता आवेदन के बाद प्रक्रिया में कोई प्रगति न देखने के बाद इनमें से कई प्रवासी हिंदू तो वापस पाकिस्तान लौट गए. ये आँकड़े साल 2021 के हैं.

एसएलएस के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढा के हवाले से अख़बार ने लिखा है, “एक बार वे वापस लौट गए तो पाकिस्तानी एजेंसियां उनका इस्तेमाल भारत को बदनाम करने के लिए करती हैं. उन्हें मीडिया के सामने लाया गया और ये बयान देने को मजबूर किया गया कि भारत में उनके साथ बुरा बर्ताव हुआ.

गृह मंत्रालय ने साल 2018 में नागरिकता आवेदन की ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू की थी. मंत्रालय ने सात राज्यों में 16 कलेक्टरों को भी ये ज़िम्मेदारी दी थी कि वे पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्धों नागरिकता देने के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार करे.

मई 2021 में गृह मंत्रालय ने गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के 13 अन्य ज़िला अधिकारियों को छह समुदायों के प्रवासियों को नागरिकता कानून, 1955 की धारा 5 और 6 के तहत नागरिकता प्रमाण पत्र देने की शक्ति प्रदान की थी.

“पाकिस्तानी उच्चायोग में पासपोर्ट के लिए वसूली जाती है मोटी रक़म”

जोधपुर में रहने वाले हिंदू सिंह सोढा ने कहा, “अगर किसी परिवार में दस सदस्य हैं, तो उन्हें पाकिस्तानी उच्चायोग में पासपोर्ट रिन्यू कराने के लिए एक लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं. ये लोग आर्थिक संकट से जूझकर ही भारत आते हैं और ऐसे में उनके लिए इतनी मोटी रक़म जुटाना मुमकिन नहीं है.”

सिंह कहते हैं कि ऑनलाइन आवेदन के बावजूद आवेदकों को कलेक्टर के पास जाकर भी दस्तावेज़ जमा कराने होते हैं, जो कि एक अतिरिक्त बोझ है.

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि वे ऑनलाइन सिस्टम की समीक्षा कर रहे हैं.

गृह मंत्रालय ने 22 दिसंबर, 2021 को राज्यसभा में बताया था कि ऑनलाइन मॉड्यूल के अनुसार, मंत्रालय के पास 10,365 आवेदन लंबित पड़े थे. ये आंकड़े 14 दिसंबर, 2021 तक के थे. इनमें से 7,306 आवेदक पाकिस्तान के थे.

25 हज़ार हिंदुओं को नागरिकता मिलने का इंतज़ार
सिंह कहते हैं कि अकेले राजस्थान में ही 25 हज़ार पाकिस्तानी हिंदू हैं जो नागरिकता मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं. इनमें से कुछ तो बीते दो दशकों से इंतज़ार में हैं. कई लोगों ने ऑफ़लाइन आवेदन किया है.

साल 2015 में गृह मंत्रालय ने नागरिकता क़ानूनों में बदलाव किए थे और दिसंबर 2014 या उससे पहले धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आने वाले विदेशी प्रवासियों के प्रवास को वैध किया था. इन लोगों को पासपोर्ट अधिनियम और विदेशी अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई थी क्योंकि उनके पासपोर्ट की मियाद ख़त्म हो चुकी थी.

भारत में शरण लेने वाले लोग या तो लंबी अवधि के वीज़ा (एलटीवी) या तार्थयात्री वीज़ा पर आते हैं. एलटीवी पांच साल के लिए दिए जाते हैं और नागरिकता पाने में इसकी बड़ी भूमिका होती है.