सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है. इस साल यह तिथि 2 अगस्त को पड़ रही है, इसलिए देशभर में इस दिन नागों की देवता स्वरूप में पूजा की जाएगी. नागपंचमी महज एक त्योहार नहीं, बल्कि भारत देश में बसी सहिष्णुता का परिचायक है. यह इस तथ्य को सामने रखता है कि कोई भी जीव, जिसके अंदर प्राण हैं, वह इस सृष्टि और धरती के लिए पवित्र है और पूज्यनीय है. जीवों में सर्पों की प्रजाति बेहद जहरीली होती है. ऐसे में मनुष्य और सांप के बीच साथ रहने को लेकर विरोधाभास दिखता है, लेकिन जिस खेत में मनुष्य अनाज बोता है, सर्प उसकी रक्षा करते हैं. इस तरह इकोसिस्टम में भी सांपों की मौजूदगी जरूरी है. संभवतः इसीलिए प्राचीन काल में नागपंचमी नाम का त्योहार बनाया गया ताकि नागों को भी देवता मानकर पूजा जाए. भगवान शिव और विष्णु की पूजा में नागों की स्थिति खास तौर पर दिखती है. 

ब्रह्मदेव का परिवार माने जाते हैं नाग
पौराणिक आधार पर नागों के जन्म की कई कथाएं हैं. एक कथा में कहा गया है सर्पों की उत्तपत्ति ब्रह्मदेव के क्रोध और फिर उससे उपजे पश्चाताप के आंसुओं से हुई है. आंसुओं में भरा ग्लानि का भाव ही सांपों का गरल (विष) बन गया. हिन्दू पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियां थीं. उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी से दैत्य उत्पन्न हुए, लेकिन उनकी जो तीसरी पत्नी कद्रू थी, उन्होंने नागों को उत्पन्न किया. दरअसल राजा दक्ष की दो पुत्रियों कद्रू और विनता का विवाह ऋषि कश्यप से हुआ. ये दोनों ही पुत्रियां पूर्ण स्त्रियां नहीं थीं. कद्रू ने एक आशीर्वाद से 1000 अंडे दिए. विनता ने सिर्फ दो अंडे दिए. कद्रू के अंडों से ही नागों की उत्तपत्ति हुई. कहते हैं कि इन अंडों में ब्रह्मा जी के आंसू का जल भरा हुआ था. विनता के दो अंडों से अरुण और गरुण का जन्म हुआ. अरुण सूर्यदेव के सारथी बनें और गरुण भगवान विष्णु के वाहन. 

पुराणों में हैं सर्पों की जातियां
पुराणों में सर्पों के दो प्रकार बताए गए हैं. दिव्य और भौम. दिव्य सर्प वासुकि, तक्षक, शेष, अनंत आदि हैं. इन्हें पृथ्वी का बोझ उठाने वाला और अग्निदेव के ही जैसा तेजस्वी बताया गया है. इसी तरह भूमि पर उत्पन्न होने वाले सर्पों की संख्या 80 बताई गई है. नागों में भी जाति का वर्गीकरण किया गया है. पौराणिक कथाओं में आठ नागों को श्रेष्ठ बताया गया है. ये हैं- अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक. इन नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं. इनमें से अनन्त और कुलिक ब्राह्मण हैं. वासुकि और शंखपाल क्षत्रिय हैं, तक्षक और महापद्म वैश्य हैं और पद्म व कर्कोटक को शूद्र कहा गया है.

ग्रहों के समान शक्तिशाली हैं नाग
अपना प्रपौत्र (नाती) और अपने ही कुल का मानते हुए ब्रह्मा जी ने इन्हें ग्रहों के बराबर ही शक्तिशाली भी दी है. इनमें अनंतनाग सूर्य के, वासुकि चंद्रमा के, तक्षक मंगल के, कर्कोटक बुध के, पद्म बृहस्पति के, महापद्म शुक्र के, कुलिक और शंखपाल शनि ग्रह के रूप माने जाते हैं. ये सभी नाग सृष्टि को घेरे हुए हैं और इसके संचालन में ग्रहों की ही तरह मुख्य भूमिका निभाते हैं. नागों को गणेशजी और रूद्र ने जनेऊ के रूप में, महादेव ने श्रृंगार के रूप में तथा विष्णु जी शैय्या रूप में उन्हें धारण कर रखा है. ये शेषनाग रूप में स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैं. वैदिक ज्योतिष में राहु को काल और केतु को सर्प माना गया है.