Baba Vaidyanath Jyotirlinga: सावन का पवित्र माह चल रहा है. सावन के महीने में किसी भी शिवालय के शिवलिंग पर जलाभिषेक और पूजा का महत्व माना गया है लेकिन विशेष रूप से द्वादश ज्योतिर्लिंग यानी कि भगवान शिव के 12 शिवलिंगों मे पूजा और दर्शन का अपना अलग महत्व है. ऐसी मान्यता है कि बस द्वादश शिवलिंग के दर्शन और सुबह शाम स्मरण मात्र से इंसान के सारे कष्ट धीरे-धीरे स्वतः खत्म हो जाते हैं. द्वादश शिवलिंगों में भी देवघर के बाबा बैद्यनाथ की पूजा का विशेष महत्व है.

बाबा बैद्यनाथ को क्यों कहा जाता है कामना ज्योतिर्लिंग
झारखंड के देवघर में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ का ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठों में से एक मां पार्वती की शक्तिपीठ एक साथ विराजमान है. जिसके कारण बाबा बैद्यनाथ को कामना ज्योतिर्लिंग भी कहते हैं क्योंकि यहां जो भक्त आते हैं वह भगवान शिव के साथ-साथ मां शक्ति की भी पूजा करते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

विश्व का इकलौता ज्योतिर्लिंग जहां मां पार्वती के साथ विराजते हैं भगवान भोलेनाथ
देवघर में बाबा बैद्यनाथ का ज्योतिर्लिंग विश्व का एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ भी है. शिव और शक्ति के एक साथ होने से बाबा नगरी और बाबा बैद्यनाथ के दर्शन का महत्व विश्व विख्यात है.

शिव और शक्ति की पूजा एक साथ
अध्यात्म जगत में भगवान शिव और शक्ति की पूजा का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव और शक्ति जीवन के दो मूल स्तंभ हैं.पौराणिक कथाओं के अनुसार देवघर में मां सती का हृदय गिरा था. यही कारण है कि देवघर में भगवान भोलेनाथ के साथ मां पार्वती का भी निवास है. बाबा नगरी में बसे भगवान शिव और शक्ति के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं और मां पार्वती और भगवान शंकर की एक साथ पूजा करते हैं.

भगवान विश्वकर्मा ने किया था मंदिर का निर्माण
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवघर में मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था. दरअसल कहा जाता है कि जब देवताओं ने देवघर में मंदिर निर्माण करने की योजना बनाई. तब इसका जिम्मा भगवान विश्वकर्मा को दिया गया. जिसके बाद विश्वकर्मा ने एक ही रात में भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर का निर्माण किया.

मंदिर पर लगे पंचशूल का रहस्य
आमतौर पर जहां शिव मंदिरों में मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल स्थापित होता है. वहीं देवघर में बाबा मंदिर के शीर्ष पर पंचशूल स्थापित है. जिसका अपना एक पौराणिक महत्व है. मान्यताओं के अनुसार रावण ने लंका में पंचशूल की स्थापना की थी जिसे भेद पाना आसान नहीं था. भगवान राम ने विभीषण की मदद से पंचशूल को भेदा था. ठीक उसी प्रकार बाबा मंदिर के ऊपर स्थापित पंचशूल भी बाबा मंदिर के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है. मंदिर पर लगा पंचशूल सभी प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा करता है. मंदिर पर लगे पंचशूल को महाशिवरात्रि के पहले उतारा जाता है और महाशिवरात्रि के दिन उसकी पूजा के बाद इसे फिर मंदिर के शिखर पर स्थापित किया जाता है.

विश्व विख्यात है देवघर का श्रावणी मेला
सावन के महीने में पूरा देवघर कांवरियों से भर जाता है. इस अवसर पर देवघर में विशेष श्रावणी मेले का आयोजन भी होता है. भगवान भोलेनाथ के भक्त बिहार के सुल्तानगंज से जल भर कर सीधे झारखंड के देवघर तक पैदल यात्रा करते हैं. जिसके कारण पूरा देवघर भगवान भोले के जयकारों से गूंज उठता है. इसके लिए सरकार और प्रशासन की तरफ से विशेष इंतजाम भी किए जाते हैं. हालांकि सावन के महीने में अब बाबा के भक्तों को बाहर से ही अरघा के द्वारा भगवान के ज्योतिर्लिंग पर अभिषेक करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है.

भक्त अब आसानी से पहुंच सकेंगे बाबा नगरी
देवघर एयरपोर्ट की शुरुआत हो जाने से बाबा के भक्तों को अब देवघर जाने में आसानी होगी.सड़क और रेल मार्ग के बाद हवाई मार्ग से जुड़ने के कारण देवघर में पर्यटन की काफी संभावनाएं जताई जा रही है.जो श्रद्धालु समय की तंगी के कारण देवघर नहीं पहुंच पाते थे.अब उन्हें देवघर में बाबा बैद्यनाथ और मां शक्ति की दर्शन और पूजा करने में आसानी होगी.