पॉक्सो कानून के तहत दर्ज होने वाले मामलों में चौंकाने वाली उछाल चिंताजनक है। केरल स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (KeLSA) की वकील पार्वती मेनन ने कहा है कि समाज में, विशेष रूप से बच्चों के बीच, यौन शिक्षा के बारे में प्रचलित अस्वस्थ धारणा चिंता का विषय है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों को ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ के बारे में कैसे जागरूक किया जाए, इस पर भी मंथन का दौर जारी है। इस संबंध में KeLSA का कहना है कि गुड टच और बैड टच (Good touch Bad touch) की परिभाषा और शर्तें भ्रमित करती हैं। इन्हें रिप्लेस करने की जरूरत है।

यौन उत्पीड़न के कारण पूरा जीवन नष्ट हो जाता है। आत्मविश्वास में कमी आने के साथ-साथ पीड़ित खुद के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े करता है। करीब 10 साल पहले बनाए गए कानून POCSO Act के तहत गुड टच और बैड टच का जिक्र किया जाता है। हालांकि, कानून के तहत शब्द, ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ अस्पष्ट हैं, ऐसा कानूनी पहलुओं को समझने वाली संस्था का मानना है।

केरल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (KeLSA) ने उच्च न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी है। इसमें कहा गया है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में “बैड टच’ शब्द बहुत सामान्य है। इसे और स्पष्ट किरने की जरूरत है। KeLSA का मत है कि गुड टच और बैड टच की परिभाषा स्पष्ट नहीं होने के कारण पीड़ित बच्चे भ्रमित होते हैं। KeLSA के मुताबिक इन शब्दों को ‘गुप्त स्पर्श'(secret touch), ‘सुरक्षित स्पर्श’ (safe touch), ‘असुरक्षित स्पर्श’ (unsafe touch) या ‘अवांछित स्पर्श’ (unwanted touch) से बदल दिया जाना चाहिए।

केरल हाईकोर्ट ने कहा था, पॉक्सो अधिनियम के तहत कठोर सजा की जानकारी के अभाव में युवा सेक्स में शामिल हो रहे थे। नतीजतन ऐसे बच्चों का भविष्य खराब होता है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और केंद्रीय स्कूल शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को राज्य में यौन शिक्षा में सुधार की दिशा में काम करने को कहा था।

KeLSA की वकील पार्वती मेनन हाईकोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट में कहा, समाज में, विशेष रूप से बच्चों के बीच, यौन शिक्षा के बारे में अस्वस्थ धारणा प्रचलित है। ये चिंता का प्रमुख विषय है। इसका समाधान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, POCSO कानून के दायरे में जो बच्चे आए हैं, वे ‘सेक्स’ शब्द को केवल सेक्स के कार्य से जोड़ते हैं। संदिग्ध स्रोत से जानकारी प्राप्त कर सेक्स के बारे में विकृत धारणाएं बनाते हैं। ऐसे में राज्य की यौन शिक्षा में जैविक अवधारणाओं (biological concepts) जैसे कई अन्य मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए।

KeLSA ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बच्चों को आसपास हो रहे सामान्य अत्याचारों से अवगत कराया जाना चाहिए। उन्हें इस तरह के अत्याचारों का जवाब देने और अपना बचाव करने का अधिकार मिलना चाहिए। KeLSA का मानना है कि उचित शिक्षा की कमी और पथभ्रष्ट होने के कारण बच्चे परिवार के सदस्यों के प्यार के वास्तविक इशारों (genuine gestures) पर भी गलत तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं। और गलत प्रतिक्रिया देते हैं।

KeLSA ने कहा, जेनुइन बर्ताव को भी गलत समझने की समस्या मनोवैज्ञानिकों और शिक्षकों की मदद से दूर हो सकती है। समझदारी भरे संतुलित प्रशिक्षण से बच्चों को बताया जा सकता है कि कौन सा शारीरिक व्यवहार गलत है। KeLSA ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बच्चों को समाज में मौजूद नकारात्मक और वहशी तत्वों से भी अवगत कराया जाना चाहिए। हालांकि, इस प्रोसेस में बच्चे समाज के प्रति त्वरित निर्णय न लेने लगें, इसका ध्यान रखना जरूरी है। बच्चों के अंदर समाज के प्रति डर विकसित करने से भी बचना चाहिए।

KeLSA की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि बच्चों को अपने शरीर से जुड़ी गोपनीयता का सम्मान करने के लिए जागरूक किया जाना चाहिए। उन्हें अपने शरीर में हो रहे बायोलॉजिकल बदलाव के बारे में वैज्ञानिक रूप से अवगत कराया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि शारीरिक बदलाव के समय बच्चे कैसे नॉर्मल रहें, परिस्थितियों को कैसे बिना असहज हुए संभालें, इन पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए। बता दें कि बच्चियां युवावस्था में प्रवेश करने पर पीरियड्स जैसी बातें अपनी मां तक से शेयर नहीं कर पातीं। ऐसे में किशोरावस्था से यौवन वाले बदलाव कई बार मनोवैज्ञानिक असर डालते हैं।

केरल में पॉक्सो मामलों पर इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कई चौंकाने वाली घटनाएं सामने आई हैं। 13 से 14 साल के बच्चों ने अपने शरीर के अंगों की तस्वीरें इसे ‘हिम्मत’ के खेल (dare game) के हिस्से के रूप में सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दिया। बच्चों को पता था कि फोटो वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सर्कुलेट की जाएगी, इसके बावजूद उन्होंने सबसे पहले अपने दोस्तों के बीच शेयर कर दिया। जब पीड़ितों के माता-पिता या रिश्तेदारों को ऐसे मामलों के बारे में पता चला, तब तक नुकसान हो चुका था।

KeLSA की वकील पार्वती मेनन ने अपनी रिपोर्ट में कहा, बच्चों को शरीर के विभिन्न अंगों के जैविक नामों से भी अवगत कराया जा सकता है, ताकि उनके निजी अंगों के लिए ‘खिलौना’ और इसी तरह के अन्य शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए। ऐसा कर के चाइल्ड अब्यूजर उनका शोषण करते हैं। वकील ने कहा, ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें पीड़ित बच्चे कहते हैं कि मुझे खिलौने से खेलने को कहा गया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के अपरिपक्व, लापरवाही और बेलगाम उपयोग के कारण अवांछित संबंध बन रहे हैं। बाद में ऐसे मामले साइबर अपराध और यौन अपराधों के रूप में रिपोर्ट किए जाते हैं। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि ‘थियेटरों में जागरूकता वाले वीडियो दिखाना अनिवार्य बनाया जाए।’ केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को मौखिक टिप्पणी में कहा था कि पॉक्सो अधिनियम पर जागरूकता फैलाने वाले लघु वीडियो की स्क्रीनिंग सिनेमाघरों में अनिवार्य किया जाना चाहिए, जैसे तंबाकू विरोधी अभियान पर फिल्मों से पहले दिखाया जाता है।