Site icon SITAMARHI LIVE

ऐसे 2 भारतीय जांबाजों की कहानी, जिन्होंने बिना हथियार उठाए पाकिस्तान को सिखाया सबक

देश आज (26 जुलाई) कारगिल विजय दिवस मना रहा है. 23 साल पहले आज ही के दिन भारत ने पाकिस्तानी सेना को करारी शिकस्त दी थी और हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है. कारगिल युद्ध को हुए 23 साल हो चुके हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि भारतीय सेना के साथ जम्मू-कश्मीर के द्रास घाटी के लोगों ने भी युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी और पाकिस्तान को सबक सिखाने में मदद की थी. ये वहीं लोग हैं, जिन्हें हम नागरिक सैनिक कहें तो गलत नहीं होगा. आज हम आपको ऐसे ही दो लोगों से मिलवाते हैं, जिन्होंने भरतीय सेना के कंधों के साथ कंधे मिलाकर इस युद्ध को लड़ा था. भले ही उन्होंने हथियार ना चलाए हों, लेकिन युद्ध में इनकी भूमिका किसी जवान से काम नहीं रही है.

यार मोहम्मद खान ने दी थी पाकिस्तानी हरकत की पहली खबर

जम्मू-कश्मीर के द्रास घाटी से आठ किलोमीटर दूर टाइगर हिल के दमन में बसी मशकु घाटी के रहने वाले यार मोहम्मद खान ने ही भारतीय सेना को पाकिस्तान की नापाक हरकत की पहली खबर दी थी. 65 साल के यार मोहम्मद पहले निवासी थे, जिन्होंने सेना को इस बात से अवगत कराया था कि पाकिस्तानी सेना की हरकत चोटियों पर है. इसके साथ ही उन्होंने सबूत भी दिया था. यार मोहम्मद ने सेना के कमांडर को दो सिगरेट के पैकेट दिखाए थे, जो पाकिस्तान में बने थे.

यार मोहम्मद ने 8 मई को पाकिस्तानी सेना की हरकत बारे में भारतीय सेना को सूचित किया था. इसके अलावा यार मोहम्मद खान ने द्रास पहुंची भारतीय सेना के आठ सिख और 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट के साथ टाइगर हिल और बत्रा टॉप को जीतने में मदद की. उन्होंने पहली बार द्रास्स घाटी पहुंचे जवानों को इन दोनों हिल पर जाने के लिए गाइड किया और भारतीय सेना ने इन दोनों पिक टॉप को फतह किया.

नसीम अहमद भारतीय जवानों को खिलाते रहे खाना

जब द्रास घाटी में युद्ध शुरू हुआ तो सभी लोगों को वहां से निकाल दिया गया था. भारतीय सेना के जवानों के अलावा वहां बहुत कम लोग बचे थे और द्रास घाटी के रहने वाले नसीम अहमद उनमें से एक थे. नसीम अहमद का द्रास बाजार में छोटा सा ढाबा चल रहा था. उस ढाबे में नसीम ने बारूद के बीच द्रास में रह रहे भरतीय सेना के जवानों को खाना खिलाते रहे. इन दो नागरिक जवानों के अलावा द्रास और कारगिल में देश की आन बचाने के लिए दर्जनों युवकों ने अपने-अपने तरीके से युद्ध में भूमिका निभाई थी.

क्यों मनाया जाता है करगिल विजय दिवस?

हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है. दरअसल, साल 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठिए आतंकवादी और सैनिक चोरी-छिपे कारगिल की पहाड़ियों में घुस आए थे. इस घुसपैठ के खिलाफ भारतीय सेना ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू किया और एक-एक घुसपैठिए को मौत के घाट उतार दिया या भागने पर मजबूर कर दिया. 26 जुलाई 1999 ही वह दिन था, जब भारतीय सेना ने कारगिल की पहाड़ियों को घुसपैठियों के चंगुल से पूरी तरह छुड़ा लिया और ऑपरेशन विजय के पूरी तरह से सफल होने की घोषणा की गई. कारगिल युद्ध को हुए 23 साल हो चुके हैं और इस साल हम कारगिल विजय दिवस की 23वीं वर्षगांठ मना रहे हैं.

Exit mobile version