Site icon SITAMARHI LIVE

KK Pathak कैसे बने बिहार के ‘हीरो’? अपने उसूलों के लिए सरकार तक से भिड़ गए

अंतत: शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के पद से केके पाठक विदा हो रहे हैं। उन्हें राज्य सरकार ने अपनी ओर से विरमित कर दिया है। वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। इसका आग्रह उन्होंने स्वयं किया था। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का स्थानांतरण-पदस्थापन और प्रतिनियुक्ति सामान्य प्रक्रिया है।

इस समय भी राज्य कैडर के ढेर सारे अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं, लेकिन केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले सभी अधिकारी खबर नहीं बन पाते। पाठक अन्य अधिकारियों से अलग हैं। उन्हें मीडिया फ्रेंडली नहीं माना जाता है। फिर भी वह जिस किसी पद पर रहते हैं, सुर्खियां बटोर लेते हैं। वह मीडिया में बने रहने की तकनीक जानते हैं, इसलिए मीडिया से मिले बिना भी उनकी हीरो वाली छवि बन जाती है।

शिक्षकों का बड़ा हिस्सा केके पाठक से हुआ नाराज

उन्हें पता है कि क्या करने से मीडिया में जगह मिलेगी। एक समय आता है जब उन्हें पर्याप्त प्रचार मिल जाता है और उन्हें लगता है कि काम हो गया है, ऐसा कुछ कर देते हैं कि राज्य सरकार उनसे मुक्ति पाने का उपाय खोजने लगती है। इस समय यही हुआ। शिक्षकों का बड़ा हिस्सा उनसे नाराज हो गया था।

महागठबंधन सरकार में उस समय के शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर परेशान हो गए थे। ताजा मामला कुलपतियों का वेतन रोकने का है, जिसने सरकार को सीधे राजभवन से टकराव लेने के लिए खड़ा कर दिया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए संभव नहीं है कि एक अधिकारी के कारण राजभवन से टकरा जाएं।

पाठक की विदाई तय

खैर, पाठक की शिक्षा विभाग से विदाई हो गई है। यह कहना अन्याय होगा कि पाठक ने शिक्षा में सुधार के लिए गंभीर प्रयास नहीं किया। कम से कम अवधारणा के स्तर पर सुधार तो हुआ ही है। शिक्षक समय पर आने लगे। कक्षाएं नियमित होने लगीं।

इन उपलब्धियों के लिए केके पाठक की सराहना होनी ही चाहिए। आशा की जा सकती है कि पाठक की जगह जो दूसरे अधिकारी आएंगे, वह सुधारों को जारी रखेंगे। किसी ईमानदार अधिकारी को एक सूत्र तो याद ही रखना चाहिए कि उनके अलावा दूसरे सभी लोग बेइमान नहीं हैं।

INPUT : JAGRAN

Exit mobile version