लंदन से उच्च शिक्षा प्राप्त एक लड़की के सामने देश-दुनिया में बहुत कुछ करने के सारे दरवाजे खुले थे, लेकिन उसने अपने गांव में बदलाव लाने का रास्ता चुना। उसने गांव की महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता की राह दिखाई तो पुरुषों को भी रोजगार दिए। जिसे जिस काम में रुचि, उसे उसी काम के लिए तैयार किया। हम बात कर रहे हैं सिवान के जीरादेई प्रखंड के नरेंद्रपुर गांव की रहने वाली सेतिका सिंह की। उन्होंने पिता संजीव कुमार की स्वयंसेवी संस्था ‘परिवर्तन’ (Parivartan) के तहत पहले चरण में पांच किमी के दायरे में आने वाले 21 गांवों को चुनकर काम शुरू किया। उनकी कोशिश का ही नतीजा है कि आज एक हजार से अधिक लोग अपने गांव में ही अपना रोजगार कर रहे हैं। सेतिका ने हाल ही में ‘सबरंगी’ (Sabrangi) के तहत महिलाओं के जीवन में रंग भरने की पहल की है। इसका उद्देश्य महिलाओं के तैयार उत्पादों को उचित बाजार दिलाना है। सेतिका के प्रयास से इलाके के करीब तीन दर्जन युवा फुटबाल, साइकलिंग तथा कबड्डी में खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुके हैं।
लंदन से पीजी करने के बाद सिवान में खोला ‘परिवर्तन’ का कैंपस
सेतिका सिंह का पैतृक गांव जीरादेई प्रखंड का नरेंद्रपुर है। पिता संजीव कुमार ‘तक्षशिला एजुकेशन सोसाइटी’ के तहत ‘डीपीएस स्कूल’ और ‘परिवर्तन’ नाम से स्वयंसेवी संस्था चलाते हैं। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से सामाजिक नीति और विकास (विशेष रूप से एनजीओ) में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने साल 2016 में पिता के एनजीओ की जिम्मेदारी उठाई। इसके पहले साल 2009 में गांव की आठ एकड़ भूमि में ‘परिवर्तन’ का कैंपस खोला जा चुका था। दो साल बाद 2011 में यहां सभी काम शुरू कर दिए गए थे। ‘परिवर्तन’ का काम देखने के लिए सेतिका महीने में 10 दिन पैतृक गांव नरेंद्रपुर में जरूर रहती हैं।,
कैंपस में सिलाई-कढ़ाई से लेकर स्मार्ट क्लास तक की व्यवस्था
‘परिवर्तन’ के कैंपस में आसपास के गांवों के बेरोजगारों को निश्शुल्क व्यक्तित्व निखार के टिप्स दिए जाते हैं। कैंपस में स्मार्ट क्लास चलते हैं। कंप्यूटर रूम व स्कूल से लेकर सिलाई-कढ़ाई तक की व्यवस्था है। परिसर में लूम की ट्रेनिंग, सिलाई और उनकी मार्केटिंग की पूरी ट्रेनिंग लगातार चल रही है। इनमें महिलाओं की बड़ी संख्या है। यहां हर महीने के काम का खाका तैयार कर उसके अनुसार काम होता है।