. पिछले 16 साल से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री (CM Nitish Kumar) की कुर्सी पर विराजमान हैं. बिहार की सियासत पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए उन्हें कई राजनीतिक दांव-पेंच से होकर गुजरना पड़ा था. नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने की पटकथा जिस रैली से हुई उसकी कहानी थोड़ी हैरान करने वाली है. कहा जाता है कि नीतीश कुमार उस रैली में शामिल नहीं होना चाहते थे. लेकिन, जब बहुत लोगों ने आग्रह किया तब वो तैयार हो गए. इसके बाद इतिहास बन गया और वर्ष 2005 में जब नीतीश कुमार दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री (Bihar Chief Minister) बने तो आज तक उनकी सत्ता बरकरार है. हालांकि, इस बीच उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा.

12 फरवरी, 1994 को यानी अब से 28 साल पहले पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में कुर्मी चेतना महारैली (Kurmi Chetna Maha Rally) हुई थी. इसके आयोजक थे पूर्व विधायक सतीश कुमार सिंह. इस रैली को सफल बनाने के लिए सतीश कुमार सिंह हर उस नेता को शामिल करना चाहते थे. इसमें सबसे प्रमुख थे नीतीश कुमार, जो रैली में शामिल नहीं होना चाहते थे. नीतीश कुमार को इस बात का डर था कि इस रैली में शामिल होने के बाद उन पर एक खास जाति के नेता होने का ठप्पा न लग जाए. लेकिन काफी प्रयास के बाद नीतीश रैली में शामिल होने के लिए तैयार हुए.

लालू यादव से अलग होने का लिया फैसला

नीतीश कुमार के बेहद करीबी नीरज कुमार बताते हैं कुर्मी चेतना महारैली में शामिल होने की पटकथा तब ही तैयार हो गई थी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और नीतीश कुमार एक ही गाड़ी से मसौढ़ी से पटना आ रहे थे. रास्ता बहुत खराब था, नीतीश कुमार ने इसके बारे में लालू यादव से बात की तब उन्होंने कुछ ऐसी बातें बोली जो नीतीश को काफी चुभ गई. विकास के प्रति लालू यादव के रवैए को देखते हुए उन्होंने तभी तय कर लिया कि उनके साथ राजनीति करना संभव नहीं है, और धीरे-धीरे अलग होने का रास्ता तय करना शुरू कर दिया.

 कुर्मी चेतना महारैली बना बदलाव की वजह

नीरज कुमार कहते हैं कि तभी वैशाली में लोकसभा का उपचुनाव था और नीतीश कुमार ने लालू यादव को एक पत्र लिखा था जिसमें विकास को लेकर कुछ सवाल खड़े किए थे. बिहार की सियासत में इस पत्र की चर्चा तेज हो गई थी. इसका असर वैशाली के उपचुनाव पर पड़ा और तब लवली आनंद लालू यादव के विरोध के बावजूद जीत गईं. इससे नीतीश कुमार का मनोबल और बढ़ा और उसके बाद पटना में कुर्मी चेतना महारैली हुई और आगे का इतिहास सबके सामने है.