डीएसपी व डिप्टी कलक्टर का पद छोड़ छह लोग बने असिस्टेंट प्रोफेसर, पूछने पर बताई ये वजह : प्रशासनिक अधिकारी बनना नौकरी तलाश रहे किसी भी युवा का सपना होता है, लेकिन बिहार में कुछ ऐसे युवा भी हैं, जिनके लिए सम्मान के साथ सुकून की जिंदगी ज्यादा अहम है। बीते कुछ साल में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में ऐसे आधा दर्जन असिस्टेट प्रोफेसर नियुक्त हुए हैं, जो पहले से प्रशासन और पुलिस में बड़े ओहदे पर थे। इन असिस्टेट प्रोफेसरों का कहना है कि प्रशासनिक अफसर बनने में रूतबा और सम्मान जरूर है, लेकिन जवाबदेहियों में उलझ कर पढ़ाई और प्रयोग थम जाता है, जबकि शिक्षा क्षेत्र को चुनने का बड़ा फायदा है कि आप अपनी पढ़ाई और ज्ञान अर्जित करने की अभिलाषा को जारी रख सकते हैं।

डीएसपी का पद छोड़कर एसबी कालेज में भूगोल के सहायक प्राध्यापक बने सदाम हुसैन कहते हैं कि पुलिस अधिकारी को जो सम्मान मिलता है, उससे जरा भी कम सम्मान गुरु का नहीं है। इसीलिए, जब मौका मिला, तब उन्होंने अध्यापन को अपना करियर चुना। एसबी कालेज में इतिहास विभाग में अभिनव आनंद, एचडी जैन कालेज के भूगोल विभाग में कुमार निर्भय, स्नातकोत्तर इतिहास विभाग में शशि भूषण देव आदि भी ऐसे ही शिक्षक हैं, जो पड़े पदों को त्याग कर आए हैं।

शशि भूषण देव, स्नातकोत्तर इतिहास विभाग में कार्यरत हैं। 53-55वीं बीपीएससी परीक्षा में बीडीओ पद के लिए चयनित हुए। छापरा जिले के गड़खा प्रखंड में में छह माह ड्यूटी की, लेकिन संतुष्टि नहीं मिली। कहते हैं कि मन अच्छे पद को पाकर खिल उठता है, लेकिन परिवार के लिए समय नहीं मिलता है। यह मुझे अंदर से कचोटता रहा। शिक्षक कार्य में आंतरिक शांति है और सम्मान भी है। एसबी कालेज के भूगोल विभाग में सदाम हुसैन असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। 56वीं बीपीएससी परीक्षा में डीएसपी के लिए चयनित किये गए और पटना मुख्यालय में छह माह सेवा भी दी। कहते हैं, पुलिस की नौकरी रास नहीं आई, शिक्षक बनने में सम्मान और संतुष्टि दोनों है।

अभिनव आनंद, इतिहास विभाग, एसबी कालेज में कार्यरत हैं। कहते हैं, 60-62वीं बीपीएससी परीक्षा से बिहार राजस्व पदाधिकारी के रूप में कार्यरत थे, छह माह सेवा देने के दौरान नेताओं व अधिकारियों के दबाव से टेंशन होने लगी। पिता प्रो. रामानंद ¨सह को एक प्रोफेसर के रूप में शांति से काम करते देखे थे। इसलिए राजस्व पदाधिकारी का पद त्याग दिया। निर्भय कुमार, एचडी जैन कालेज के भूगोल विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। मधेपुरा में डिप्टी कलक्टर के रूप में नियुक्त थे, लेकिन वर्क कल्चर रास नहीं आया, छुट्टी के दिन भी छुट्टी नहीं मिलती थी। विद्यार्थियों को पढ़ाने में अच्छा भी लगता है और उनसे जो सम्मान मिलता है, उससे संतुष्ट हैं।