कैमूर में किसान धीरे-धीरे पारंपरिक खेती छोड़ वैज्ञानिक पद्धति अपना रहे हैं. दरअसल नई तकनीक अन्नदाताओं के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है. अब किसान गेंहू और धान छोड़कर केले की खेती को तवज्जों दे रहे हैं.

लागत कम, उत्पादन ज्यादा
जिले में कुल 5 हेक्टेयर जमीन पर किसान केले की खेती कर रहे हैं. भभुआ प्रखंड के महेसुआ के किसान नवल किशोर सिंह ने बताया कि उन्होंने पहली बार तीन एकड़ रकबा में केले की खेती की थी. जिसमें प्रति एकड़ लागत पैंसठ हजार रुपये आई. जैन कंपनी से टिशू कल्चर मंगाया था. उनके द्वारा ही समय-समय पर गाइड किया गया. 

मुनाफे का सौदा वैज्ञानिक पद्धित
नवल किशोर ने बताया कि बरसात से पहले उन्हें कोविड हो गया था, जिसकी वजह से वो खेती की भरपूर देखभाल नहीं कर पाएं.  मानसून के मौसम में खेत पानी से भर गए. जिसकी वजह से कुछ फसल बर्बाद हुई. फिर भी उन्हें उम्मीद है की उनकी फसल घाटा नहीं देगी. उन्हें फसल बेचने के बाद दोगुना लाभ ही मिलेगा. उन्होंने कहा कि फसल तैयार हो गई है जिसका हार्वेस्टिंग इसी महीने में की जाएगी. वहीं उन्होंने बताया कि फसल ड्रिप इरिगेशन व्यवस्था के तहत सरकार से उन्हें अनुदान भी मिला है. उनका रकबा तीन एकड़ में है. जिसपर उगाई गई फसल भभुआ के मार्केट में ही बिक जाएगी. 

किसानों को किया जाएगा प्रेरित
उधर, कैमूर की उद्यान सहायक निदेशक तबस्सुम परवीन ने जानकारी देते हुए बताया कि जिले में कुल 5 हेक्टेयर में केले की खेती होती है. कुछ लोग निजी संस्थानों की मदद से भी खेती कर रहे हैं. इस बार गवर्नमेंट को रिक्रूटमेंट कर और लोगों को प्रोत्साहित कर केले की खेती करने के लिए प्रेरित किया जाएगा. 

मदद के लिए आगे आए शासन-प्रशासन
साथ ही उन्होंने बताया कि ड्रिप इरिगेशन व्यवस्था पर सरकार किसानों को अनुदान देती है. अधिकारी ने कहा कि  केले की खेती करने से किसानों को 2  से 3 गुना लाभ होता है. वहीं अगर केले की हारवेस्टिंग छठ के समय हो तो मुनाफा 5 गुना तक बढ़ जाता है.

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