बिहार के सीतामढ़ी में माता सीता के जन्‍मस्‍थली को भव्‍य रूप देने के लिए राज्‍य सरकार एक बड़ी योजना शुरू करने जा रही है। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को सीता की जन्‍मस्‍थली पुनौरा धाम सीतामढ़ी में आयोजित एक कार्यक्रम में इसका ऐलान किया। कार्यक्रम में डेप्‍युटी सीएम सुशील कुमार मोदी भी मौजूद थे। आइए जानते हैं, इस मंदिर से जुड़ी खास बातें-

बिहार सरकार ने सीता मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 20 एकड़ जमीन दी है। जीर्णोद्धार कार्यक्रम की शुरुआत के दौरान नीतीश कुमार के साथ बीजेपी के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष प्रभात झा भी मौजूद थे। राज्‍यसभ सांसद प्रभात झा ने ही इस मंदिर के जीर्णोद्धार का सुझाव नीतीश कुमार को दिया था।
-जीर्णोद्धार के दौरान यहां पर एक विशाल मंदिर का निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा भव्‍य मंदिर परिसर बनेगा। अभी सीतामढ़ी में माता सीता का एक छोटा मंदिर है। प्रभात झा के मुताबिक सीतामढ़ी को देश के सबसे बड़े धार्मिक स्‍थल के रूप में विकसित किया जाएगा।
– बताया जा रहा है कि प्राचीन काल में शिक्षा का केंद्र रहे नालंदा और जैन धर्म के पवित्र स्‍थल वैशाली की तरह से ही सीतामढ़ी का विकास होगा। इसमें दर्शनार्थियों के लिए सुविधाओं का पूरा ध्‍यान रखा जाएगा। इससे राज्‍य में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और बड़ी संख्‍या में लोगों को रोजगार मिलेगा।

राज्‍य सरकार ने सीतामढ़ी के विकास के लिए गत 17 अप्रैल को ही 48 करोड़ 50 लाख रुपये जारी कर दिया है। सीतामढ़ी के विकास में प्रख्‍यात धर्मगुरु रामभद्राचार्य भी मदद कर रहे हैं। रामभद्राचार्य जन्‍मांध हैं लेकिन रामायण के मर्मज्ञ हैं। उन्‍होंने 100 से अधिक किताबें लिखी हैं।
-बिहार में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा से उपजे राजनीतिक टकराव के बीच इस कार्यक्रम के कई राजनीतिक अर्थ भी निकाले जा रहे हैं। घटनाओं के बाद वहां राजनीतिक स्तर पर भी टकराव होता नजर आया है। इस टकराव को बीजेपी और जेडीयू के बीच बढ़ती दूरी के रूप में देखा गया है। ऐसे में अगर जानकी मंदिर के जीर्णोंद्वार के लिए आयोजित कार्यक्रम में नीतीश कुमार का खुद मौजूद रहना बड़े राजनीतिक डिवेलपमेंट के रूप में देखा जा रहा है।

बीजेपी उपाध्यक्ष का कहना है कि जानकी मंदिर के जीर्णोद्वार के लिए जो भी कदम उठाए गए हैं, वे मुख्यमंत्री के प्रयासों से ही संभव हुए हैं। मुख्यमंत्री यह भी मान चुके हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर इस मंदिर के प्रांगण को भी विकसित किया जाए और इसे ऐसा स्थल बनाया जाए, जो पांचवें धाम के रूप में पहचाना जाए।