बरौली के बेलसंड गांव के रहने वाले एक्टर पंकज त्रिपाठी और हथुआ के सिंगहा गांव के रहने वाले फिल्म निर्माता कमलेश मिश्र के बीच ‘आजमगढ़’ फिल्म को लेकर विवाद हो गया है.2015 में ‘आजमगढ़’ फिल्म की शूटिंग हुई थी. फिल्म 2019 में सेंसर बोर्ड से पास हुई. इस साल मुंबई में फिल्म की होर्डिंग लगी.

इसके बाद ये सारा विवाद सामने आया है. पोस्टर जारी होने के बाद पंकज त्रिपाठी ने इसका विरोध जताया है. इसके बाद फिल्म निर्माता और एक्टर ने एक दूसरे को कानूनी नोटिस दिया है. गौरतलब है कि कमलेश मिश्र को किताब फिल्म के लिए नेशनल व अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मिल चुका है.

इसके साथ ही उनका स्लोगन ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ के लिए प्रधानमंत्री से अवार्ड पा चुका है. पंकज त्रिपाठी को भी कई अवार्ड मिल चुके है. ‘आजमगढ़’ में पंकज त्रिपाठी ने एक ऐसी मौलवी की भूमिका निभायी है, जो नवयुवकों को आतंकवादी बनने के लिए प्रेरित करता है.

अशरफ अली के किरदार में पंकज त्रिपाठी हैं. दिल्ली में एक मौलवी गिरफ्तार होता है. जो डॉक्टर बनाने के लिए युवकों को लेकर आता है और उसका ब्रेन वाश कर आतंकवादी बनाने के लिए पाकिस्तान भेजता है. वहीं आजमगढ़ का एक युवक, जो परीक्षा में टॉपर होता है, पूरी कहानी इस पर है.

इस फिल्म के माध्यम से हमने यह दिखाने की कोशिश की है कि आजमगढ़ का रहने वाला हर युवक आतंकवादी नहीं होता है.पंकज त्रिपाठी का कहना है कि इस फिल्म के रिलीज होने के बारे में पता ही नहीं है. उनकी जानकारी में यह एक शॉर्ट फिल्म है और इसके लिए उन्होंने सिर्फ तीन दिन शूटिंग की, लेकिन फिल्म के निर्माता उनके नाम का इस्तेमाल करके फिल्म को ऐसे प्रचारित कररहे हैं, जैसे फिल्म में पंकज त्रिपाठी की लीड भूमिका हो.

सूत्रों के मुताबिक पंकज त्रिपाठी नहीं चाहते कि फिल्म में उनके नाम को जोड़कर सस्ती लोकप्रियता बटोरी जाये. पंकज त्रिपाठी ने बिना पारिश्रमिक लिये इस फिल्म में काम किया है. 10 वर्ष के बाद उनकी तस्वीर लगाकर उसे भुनाने की कोशिश की जा रही है.

निर्माता कमलेश मिश्र का कहना है कि 2007 में मुंबई में ‘परिंदे’ कररहा था. पंकज त्रिपाठी उन दिनों स्ट्रगल कररहे थे. मेरे पास काम मांगने आये. मैंने उस फिल्म के लिए उन्हें कास्ट कर लिया. पता चला कि वे हमारे ही जिले गोपालगंज से हैं और उनके दादाजी हमारे हिंदी के प्रोफेसररहे हैं.

‘परिंदे’ नहीं बनी, लेकिन मित्रता बनी रही. 2011 में पंकज को स्क्रिप्ट सुनायी. उसमें अशरफ अली का किरदार इतना अच्छा लगा कि उन्होंने बिना एक पैसा लिये किरदार करने की इच्छा जाहिर की. शूटिंग के लिए उनके चारदिन चाहिए थे. अक्तूबर 2011 में उनके हिस्से की तीन दिन की शूटिंग कर ली.

चौथा दिन मुंबई में शूटिंग होनी थी. उसके बाद उनकी कुछ फिल्में आने लगीं. वे चर्चित होने लगे. दो तीन सालों तक वे चौथे दिन का शूट टालते रहे. दिसंबर 2015 में डबिंग के लिए अप्रोच किया. वे डेट पर डेट देने लगे और 2018 में डबिंग से मना करदिया.

हमारे बीच औपचारिक एग्रीमेंट था नहीं, मैंने उनपरदबाव नहीं बनाया. उनकी आवाज जो सेट पर रिकाॅर्ड हुई थी, फिल्म में वही रहने दिया. दिसंबर 2019 में फिल्म सेंसर बोर्ड से पास हुई. फरवरी में मालिकाना हक टैग प्रोडक्शन, जिनका एक ओटीटी प्लेटफाॅर्ममास्क टीवी है, को दे दिया.

INPUT : PRABHAT KHABAR