आमतौर पर जेल का नाम आने के साथ ही हमारे जेहन में अक्सर खूंखार कैदियों का चेहरा सामने आ जाता है। भले ही उनके हाथ गुनाहों से रंगे हों या नहीं, मगर कैदी का नाम जेहन में आते ही उनको लेकर हमारे जेहन में ऐसी ही छवि उमड़ती-घुमड़ती है। मंडल कारा में ऐसे तो क्षमता से अधिक बंदी हैं, मगर उनमे से कई अच्छे कार्यों व अपनी दिनचर्या को लेकर जेल प्रशासन की प्रशंसा के पात्र हैं। 80 बंदी इस बार बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा देनेवाले हैं और इसके लिए सलाखों के अंदर वे पढ़ाई-लिखाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं। नोट््स व गेस पेपर लेकर पढ़ता हुआ देखकर दूसरे बंदी भी काफी प्रभावित होते हैं।

ये कैदी दिनचर्या में पढ़ाई पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। जेल के सूत्रों का कहना है कि दर्जनों ऐसे बंदी हैं जो तीसरी, पांचवी, आठवीं कक्षा की पुस्तकें पढ़ रहे हैं तथा रोजगारोन्मुखी कोर्स का ज्ञान भी हासिल कर रहे हैं। जेल प्रशासन का कहना है कि कैदियों में सुधारात्मक प्रवृत्ति को देखते हुए बंदियों में शिक्षा के प्रसार के लिए अपने स्तर से भी सहयोग दिया जाता है। जेल अधिक्षक मनोज कुमार ङ्क्षसहा ने बताया कि बंदियों के जेल में प्रवेश के समय उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर साक्षरता कार्यक्रम, विभिन्न वर्गों में नामांकन और विविध सर्टिफिकेट कार्यक्रमों से जोडऩे का प्रयास किया जाता है। उनका मानना हैं कि यहां के कैदियों में पढ़ाई के प्रति जागरूकता बढ़ी है।

बंदियों के लिए बंदियों द्वारा कार्यक्रम जगा रहा अलख

यहां जेल के 80 बंदी राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) से 10वीं की शिक्षा ले रहे हैं। पिछले साल सात कैदियों ने 10वीं की परीक्षा दी। पूरे प्रदेश की जेलों में सबसे अधिक परीक्षार्थी बंदी सीतामढ़ी से ही रहे। यहां के बंदियों के लिए कई व्यावसायिक कोर्स की पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। एनआईओएस की ओर से पढऩे के लिए किताब की व्यवस्था की गई है। अन्य इंतजाम जेल प्रशासन की ओर से की गई है।

जेल से छूटने के बाद ये कैदी नए रोजगार की तलाश कर सकेंगे तथा समाज की मुख्यधारा से जुड़कर अपने गुनाहों को भुलाकर नई पहचान बना सकेंगे। इतना ही नहीं महिला कैदियों के साथ रहनेवाले 10 बच्चे भी पढ़ाई-लिखाई कर रहे हैं। उनको पेंङ्क्षसल और स्लेट उपल्बध कराया गया है। जहां बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा दी जा रही है। जेल में बंदियों के लिए बंदियों द्वारा कार्यक्रम भी चलाया जाता है। साक्षर कैदियों द्वारा निरक्षरों को साक्षर बनाने की कोशिश की जाती है।