सुप्रीम कोर्ट ने लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति यानि ST में शामिल करने के बिहार सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा है- लोहार और लोहरा जाति एक नहीं है. जस्टिस के एम जोसेफ औऱ जस्टिस ऋषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा-लोहरा जाति में लोहार को भी शामिल करना पूरी तरह से गैरकानूनी और मनमानी है।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि शुरू से ही लोहार जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं था. उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया था. कोर्ट ने कहा कि संविधान की धारा 342 के तहत अनुसूचित जनजाति में शामिल जातियों की सूची में राज्य सरकार जैसी किसी अक्षम संस्था फेरबदल नहीं कर सकती है. कोर्ट ने ये भी साफ किया कि लोहरा जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का लाभ मिलता रहेगा।

कोर्ट ने बिहार सरकार की इस दलील को मानने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विनय प्रकाश बनाम राज्य सरकार के मामले में 1997 में, नित्यानंद शर्मा बनाम राज्य सरकार के मामले में 1996 में और प्रभात कुमार शर्मा बनाम यूपीएससी के मामले में 2006 में कोर्ट ये साफ कर दिया था कि लोहार जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं है औऱ वह अन्य पिछड़ी जाति में शामिल है। 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हम इस स्थिति से बहुत दुखी हैं. ये एक ऐसा मामला है जिस पर सुप्रीम कोर्ट तीन दफे फैसला सुना चूकी है. कोर्ट पहले ही स्पष्ट तौर पर कह चुकी है लोहार जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं है और वह अन्य पिछड़ी जाति का हिस्सा है. संविधान में मिले अधिकार के तहत राज्य कई बातों का फैसला ले सकता है. लेकिन अगर कोई ऐसा फैसला लेना हो जिससे नागरिकों के अधिकार पर असर पड़े तो फैसला लेने से पहले उस पर गहन राय विचार किया जाना चाहिये।

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