अग्रोहा के नंगथाला निवासी बीए पास रमेश ने 11 पेज के सुसाइड नोट (Suicide Note) में अपने परिवार की हत्या (Murder) की बात कबूली है. सुसाइड नोट में रमेश ने एक-एक बात का जिक्र किया कि उसने ऐसा क्यों किया और वह मन में क्या सोच रहा था, इसमें उसकी पत्नी भी साथ थी या नहीं सभी बातों का जिक्र किया है. सुसाइड नोट एक कॉपी से पुलिस ने बरामद किया. रमेश के सुसाइड नोट से साफ है कि वह जिंदगी से निराश था. वह अपनी पत्नी के साथ भी मरने की बातें भी किया करता था. रमेश की पत्नी सविता भी उसका मरने तक में साथ देने की बात करती थी.

कापी में 11 पेज में रमेश ने सुसाइड नोट लिखा है. उसमें लिखा है कि आप सब से माफी. बहुत दुख दे रहा हूं लेकिन मासूम भी, भोली भी सविता और नादान व बच्चों को बेरहम दुनिया में अकेला नहीं छोड़ सकता इनको भी साथ ले गया हूं. सबसे माफी बेशक कितना भी बुरा कहो उससे ज्यादा बुरा बन के जा रहा हूं. सिर्फ आपका अपराधी हूं बाकी दुनिया का नहीं, आज के दिन सुख में दुखी कर रहा हूं. अपना ख्याल रखना वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. संदीप से भी माफी, पिछले साल आपको बताया था लेकिन ये सब होना ही था. सिर्फ आपका अपराधी हूं और किसी का नहीं. आपका रमेश, मुझे मोक्ष शांति चाहिए थी.

मृतक रमेश ने आगे लिखा कि जो भी पढ़ रहा है मुझे अपराधी न समझे. रात के 11 बज चुके हैं न दुख है न डर. न सर्दी लग रही है. पता नहीं चला वैसे 11 कब बज गए, 2 घंटे लगे सब करने में. सबको नींद की गोलियां दी हैं. आज मेरी लिखाई भी बदली बदली है, जो भी किया कोई अचानक हुई घटना हैं, ऐसा नहीं है. न कोई डर था न कर्ज हैं. 50 हजार तक कमा रहा हूं. जिंदगी के सब सपने पूरे कर चुका हूं.

रमेश ने आगे लिखा कि मैं बचपन से सबसे अलग था. जब होश संभाला तो संसारिक सुखों की बजाय दुनिया को अलग नजर से देखता, दुनिया की असलियत को समझता. आखिर हम धरती पर क्यों है? क्या मकसद है, लोग किस चीज के लिए भाग रहे हैं? मगर काफी समय तक इसी सोच में रहा कॉलेज में दर्शन पढ़ने के बाद मन दुनिया से अलग हो गया. सब चीज नकली लगने लगी किसी वस्तु में आनंद नहीं रहा, मगर दिमाग का एक हिस्सा सांसारिक चीजों और लोगों में था इसी बीच पिता चल बसें. बस यहीं से मेरी बरबादी शुरू हुई.

न चाहते हुए शादी हुई ताकि मां भाई का ख्याल रहे. लेकिन इन्होंने मेरा जीवन अधिक खराब किया. मेरा मन पिछले 15 साल से सन्यासी था, मैं मोक्ष मुक्ति चाहता था. मगर गृहस्थी से निकल नहीं सका. मुझे हमेशा गलत समझा जाना, धीरे-धीरे मेरा दिमाग बदलता गया और मैं अंदर अंदर डरने लगा. छोटे बच्चे मासूम बीबी को छोड़कर जा नहीं सकता था. आखिर अलग घर बनाकर रहने लगा, लेकिन जिंदगी के कुछ भी सही नहीं रहा, सब दूर होते गए, क्योंकि सब लालची थे, मैं सांसारिक सुखों की बजाय शांत रहता. मगर गुस्सा काबू नहीं रख सका बस उम्र के साथ यही सब गलत हुआ.

पिछले साल मैंने सबसे सन्यास मांगा मुझे मुक्ति दे दो. मगर सबने सांसारिक दुनिया का पाठ पढ़ाकर रोक लिया. मैं अक्सर बीवी के आगे रोता था. मुझे जाने दो मगर वो रोक लेती थी. गले में बहुत दिक्कत थी. सहन नहीं कर सका. लगातार बिगड़ते हालात और मासूम बीवी बच्चों को बेरहम दुनिया में अकेला भी नहीं छोड़ सकता था, अकेला मर भी नहीं सकता था. आखिर मेरी बीवी ने जिंदा मुर्दा साथ रहने की बात बोली. इसलिए मैं इनको साथ ले गया हूं. अब पीछे रोने वाला कोई नहीं. मेरा मन शांत है कोई लालच नहीं रह गया. मतलबी दुनिया में अब इनके अलावा कोई नहीं है. घर परिवार वाले भाई-बहन हमें पहले ही अकेला छोड़ चुके हैं. खैर आखिरी समय सबसे माफी और सबको माफ किया. पूरी तरह मैं सन्यासी होकर चला गया हूं तो आखिरी समय बेरहम लालची लोगों से कहना भी क्या.

कोई मुझे कायर, कातिल न कहे जो भी मेरी दौलत थी बीवी बच्चों के साथ ले गया हूं. बाकी सब सांसारिक चीजें यहीं हैं. धन से मन खुश नहीं होता पैसा तो चुनाव के समय खूब कमा लेता मगर मन तो फकीर हो चुका है. बीवी बच्चों के पैरों में माफी ली है. जिंदगी में जो चाहता था वो पा लेता था मगर अंदर का मन हमेशा भरा ही रहता, उसे तो शांति चाहिए थी मगर सांसारिक चीजें वो सब नहीं दे पा रही थीं, जो हम कभी हासिल नहीं करते. खैर सांसारिक लोग इस बात को नहीं समझेंगे मेरा मन तो ब्रह्मांड, आकाश गंगाओं में घुमता है घर, गाड़ी, प्लाट, रुपया आनंद की वस्तु मुझे कोई शांति नहीं दे सकीं.

सब मेरे लिए कचरे समान या बस जी नहीं सका यहीं सबको गलत लगेगा. मेरा जीवन तो खुद की तलाश में या हम क्यों हैं किस लिए हैं इतनी आकांशाओं में हम ही क्यों हैं, सब एक जैसा जीवन ही क्यों जी रहे हैं. आखिर धन, दौलत, जमीन यहीं सब सबका मकसद क्यों हैं, जब सब यही रहता है. कुछ लाख साल बाद यहां धरती पर कोई नहीं रहेगा. हर रोज लाखों लोग मर रहे हैं. इसलिए हमारे जाने से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा. 72 घंटे में सब उसी दुनिया में भागने लगेंगे. एक सांसारिक नकली दुनिया. खैर ज्यादा क्या लिखना है कभी चिंटी कोनी मारने वाला परिवार खत्म करें तो लोग गुस्सा भी करें गाली भी दें हो सकता है. मगर मैं तो सन्यासी हो चुका था पिछले एक दो साल में जीवन बस अटका हुआ था. आखिर 4-5 दिन पहले दिमाग ने हार मान ली. सब चीजों से मोह खत्म हो गया. बीवी को बताया उसने मेरी हां में हां मिलाई और आखिरी समय साथ रहने की बोली. मेरे पास कोई सांसारिक दौलत नहीं. आखिरी समय कोई कर्ज नहीं किसी से कोई शिकायत नहीं. बस शांति है सकून है हमेशा के लिए. हिसार विकास 8642998000 के पास 2 लाख जमा हैं उनमें से 1 लाख प्रमोद को बाकी विजय को देना मशीनें कोई बेच सकें तो किसी का बकाया हो दे देना.

पहली तो पूरी कर चुका हूं, सबको साथ ले जा रहा हूं.अस्पताल से सीधे श्मशान ले जाया जाएं. परिवार में कोई नहीं सन्यासी हो चुका हूं, अब पीछे कोई नहीं है रोने वाला. अस्थियां हरिद्वार की बजाय श्मशान के पेड़ पौधों में डाल दी जाएं. हमको इतनी शांति चाहिए. मेरे घर को हमेशा बंद रखा जाए, मेरी आत्मा यहीं शांति से रहेगी. दुकान का सामान बेचकर किसी का बकाया है उनको दे दिया जाए, बाकि सब कबाड़ में बेचकर दान कर देना. मुझे सन्यासी की तरह विदा करें बस कुछ छोड़ रहा हूं. पीछे से कोई नहीं छोड़ गया हूं जो है वो सब मेरे साथ जा रहा है.

तीन बार बिजली के तार मुंह में लिए मगर करंट नहीं लग. अब याद आया मुझे तो कभी करंट लगता ही नहीं था. सड़क पर जा रहा हूं शरीर का बोझ खत्म करना है. रात के चार बज चुके हैं घर से निकल चुका हूं. इतनी सर्दी में सबको परेशान करके जा रहा हूं. माफ करना, सबसे माफी. जिंदगी के आखरी दिनों में बहुत मन लगाने की कोशिश की थी. मशीनें खरीदी दुकान भी खरीद ली थी. दो लाख दे दिए थे और भी पैसा बहुत आ रहा था. चुनाव में बहुत पैसा कई लाख आने थे. लेकिन शरीर दिमाग हार मान चुके थे मन अब आजाद होना चाहता था. कोई सुख कोई बात अब रोक नहीं सकती थी रोज रात को ये सब करने की करता.