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पिछले तीन-चार साल में केरल को छोड़कर देश के सभी राज्यों में स्कूली बच्चों द्वारा शुल्क देकर निजी ट्यूशन लेने में वृद्धि हुई है। बिहार और बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां दूसरे प्रदेशों की तुलना में सबसे अधिक बच्चे ट्यूशन पढ़ रहे हैं। यह खुलासा इसी बुधवार को प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन असर-2021 की रिपोर्ट में हुआ है।

शिक्षा के जानकार निजी ट्यूशन में लगातार हो रही वृद्धि को संस्थागत शिक्षण के लिए चिंतनीय बता रहे हैं। असर की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में राष्ट्रीय स्तर पर 30 फीसदी ही बच्चे ट्यूशन लेते थे पर, 2021 में यह बढ़कर 40 फीसदी पहुंच गया है। ट्यूशन लेने वालों में सरकारी और निजी स्कूलों के छात्र-छात्राएं दोनों ही शामिल हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि कम पढ़े-लिखे माता पिता के बच्चों में ही ट्यूशन पढ़ने की प्रवृत्ति अधिक बढ़ी है। ऐसे परिवारों के बच्चों में जहां 12.6 फीसदी की वृद्धि हुई है वहीं अधिक पढ़े-लिखे माता-पिता के बच्चों में ट्यूशन लेने वाले 7.2 फीसदी अधिक हुए हैं।

बात बिहार की करें तो यहां के विद्यालयों में नामांकित 64.3 फीसदी बच्चे वर्ष 2020 में ट्यूशन पढ़ रहे थे। जबकि 2021 में 73.5 प्रतिशत बच्चे ट्यूशन ले रहे हैं। अर्थात 26.5 फीसदी बच्चे ही ऐसे हैं जिनका या तो स्कूल की पढ़ाई पर भरोसा कायम है या स्वाध्याय पर। स्कूलों के प्रशासन के लिए यह आंकड़े चेतावनी की तरह हैं। बिहार के अभिभावकों द्वारा पढ़ाई में घर में बच्चों को सहयोग की बात करें तो असर रिपोर्ट कहती है कि इस मामले में निजी स्कूलों के बच्चे अधिक भाग्यशाली हैं। निजी स्कूलों के 76.1 फीसदी की तुलना में सरकारी स्कूलों के 62 फीसदी बच्चों को ही पढ़ाई में घर में मदद मिल पाती है।

सरकारी स्कूल में बड़ी उम्र के बच्चों की संख्या बढ़ी

हालांकि, असर रिपोर्ट का फलाफल 5-16 आयुवर्ग के 3590 घरों के 4832 बच्चों के फोन से सर्वेक्षण पर आया है, लेकिन इसके मुताबिक स्कूलों में बड़ी उम्र के बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। 15-16 आयुवर्ग के बच्चों का सरकारी स्कूलों में नामांकन का आंकड़ा 2018 में 57.4 प्रतिशत था। 2021 में यह बढ़कर 67.4 हो गया है। इस वृद्धि के दो कारण माने गये हैं। पहला कि इस आयुवर्ग के अनामांकित बच्चों का अनुपात 2018 में 12.1 फीसदी से घटकर 2021 में 6.6 फीसदी हो गया है। दूसरा कि निजी स्कूलों के नामांकन में गिरावट आयी है। बात 6-14 आयुवर्ग की करें तो 2018 में अनामांकित बच्चों का अनुपात 1.4 था जो 2020 में बढ़कर 4.6 हो गया। मौजूदा साल में भी यही बरकरार है।