बिहार में जहरीली शराब से कम से कम 80 लोगों की मौत के बाद शराबबंदी पर सवाल उठाने वालों को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबी औऱ पियक्कड़ करार दे रहे हैं। लेकिन क्या बिहार के मुख्यमंत्री पटना हाईकोर्ट को भी पियक्कड़ कहेंगे?

दो महीने पहले पटना हाईकोर्ट ने बिहार के अवैध शराब कारोबार की परत दर परत कलई खोल दी थी। हाईकोर्ट ने साफ कहा था कि बिहार में शराबबंदी पूरी तरह फेल है। ये पुलिस, उत्पाद अधिकारियों, ट्रांसपोर्ट विभाग के अधिकारियों के साथ साथ टैक्स वसूलने वाले विभाग के अधिकारियों के लिए मोटी कमाई का जरिया बन गया है। पटना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ साफ कहा था कि शराब के कारण बिहार के लोगों की जान खतरे में है। हाईकोर्ट ने 20 पन्ने के अपनी फैसले में शराब पर सरकार को नंगा कर दिया था लेकिन नीतीश कुमार औऱ उनकी सरकार निश्चिंत होकर सोयी रही।

हाईकोर्ट के जस्टिस पूर्णेंदु सिंह की बेंच ने 12 अक्टूबर को ये फैसला दिया था. नीरज सिंह बनाम बिहार सरकार के मामले में जस्टिस पूर्णेंदु सिंह की बेंच ने शराबबंदी के बहाने पूरे सरकारी तंत्र की कमाई की पोल खोली थी. हाईकोर्ट ने ये साफ कहा था कैसे बडे शराब माफियाओं को बचाया जा रहा है और गरीबों की जिंदगी तबाह की जा रही है. हाईकोर्ट ने कहा था।

“शराबबंदी के बाद, बिहार में लगातार बड़ी संख्या में जहरीली शराब त्रासदी देखी गई है. ये सबसे चिंताजनक पहलू है जिस पर इस अदालत ने गौर किया है. न केवल जहरीली शराब बल्कि अवैध नशीली दवाओं के बड़े पैमाने पर उपयोग से भी बिहार के लोगों का जीवन खतरे में है।



12 अक्टूबर को हाईकोर्ट के फैसले में साफ तौर कहा गया था। “इस न्यायालय ने पाया है कि बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम, 2016 के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने में राज्य तंत्र की विफलता से राज्य के नागरिकों का जीवन खतरे में है.”



शराबबंदी अधिकारियों के लिए मोटे पैसे का खेल है

अब विस्तार से पढ़िये 12 अक्टूबर 2022 को पटना हाईकोर्ट द्वारा दिये गये फैसले को. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि बिहार का पूरा सरकारी सिस्टम शराबबंदी कानून के तहत गरीबों को फंसाने में लगा है. न केवल पुलिस अधिकारी, आबकारी अधिकारी, बल्कि राज्य कर विभाग और परिवहन विभाग के अधिकारी भी शराबबंदी से प्यार करते हैं, उनके लिए यह मोटी रकम है. हाईकोर्ट ने कहा था।



“जांच एजेंसी जानबूझकर शराब तस्करों या गिरोह संचालकों के खिलाफ चार्जशीट पेश नहीं करती है बल्कि गरीब चालक, क्लीनर, शराब की लोडिंग और अनलोडिंग में लगे मजदूरों और कभी-कभी राहगीर जिनका उस अपराध से कोई संबंध भी नहीं है, उनके खिलाफ चार्जशीट दायर करती है. न केवल पुलिस अधिकारी, आबकारी अधिकारी, बल्कि राज्य कर विभाग और परिवहन विभाग के अधिकारी भी शराबबंदी से प्यार करते हैं, उनके लिए यह बड़ी रकम है।

शराब पीने वाले गरीबों और उनसे जुड़े गरीब लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों की तुलना में किंगपिन/सिंडिकेट संचालकों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या कम है. अधिनियम के प्रकोप का सामना कर रहे राज्य के अधिकांश गरीब वर्ग का जीवन दिहाड़ी मजदूर हैं जो अपने परिवार के केवल कमाने वाले सदस्य हैं. नतीजा परिवार के सदस्यों के भूखे मरने की नौबत आ गई है. जांच एजेंसी जानबूझकर कानून के अनुसार तलाशी, जब्ती और जांच न करके माफिया को सबूत के अभाव में मुक्त कर देती है।”



जहरीली शराब पर कोर्ट ने जतायी थी गंभीर चिंता

12 अक्टूबर को ही पटना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था..“प्रदेश में मिथाइल अल्कोहल युक्त अवैध शराब पीने वालों ने अपनी जान गंवाई है. वैज्ञानिक रिपोर्ट से पता चलता है कि 5 मिलीलीटर मिथाइल अल्कोहल एक अंधा बनाने के लिए पर्याप्त है और 10 मिलीलीटर से अधिक अक्सर घातक होता है. नकली शराब से प्रभावित मरीजों के इलाज के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. शराबबंदी के बाद राज्य में बड़ी संख्या में जहरीली शराब त्रासदी देखी गई है. यह सबसे चिंताजनक पहलू है जिस पर इस अदालत ने गौर किया है. न केवल जहरीली शराब बल्कि अवैध नशीली दवाओं के बड़े पैमाने पर उपयोग से भी लोगों का जीवन खतरे में है.”



शराब के खेल में पुलिस औऱ राजनेताओं की सांठगांठ

हाईकोर्ट ने 12 अक्टूबर को ही अपने फैसले में कहा था..“बिहार राज्य में शराब की संगठित तस्करी हुई है. इसमें राजनीतिक कनेक्शन वालों और पुलिस के साथ तस्करों का श्रेणीबद्ध तरीके से जुड़ाव है. पुलिस और अन्य अधिकारी जानबूझकर विभिन्न तस्करों और सिंडिकेट संचालकों के संबंध में सबूत नहीं देते हैं. शराबबंदी ने वास्तव में शराब और अन्य प्रतिबंधित सामानों के अवैध कारोबार को बढ़ावा दिया है. शराब खुले रूप से उपलब्ध है. तस्करों से सांठगांठ करने वाली पुलिस के लिए यह कठोर प्रावधान आसान हो गया है.”



सरकार दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती

हाईकोर्ट ने 12 अक्टूबर को अपने फैसले में कहा है ..“जिन अधिकारियों की सांठगांठ के बिना शराब तस्करी संभव नहीं है, उनके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई करने में राज्य सरकार विफल है. राज्य सरकार को ऐसे अधिकारियों, विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों, आबकारी अधिकारियों, वाणिज्यिक कर अधिकारियों और संबंधित जिले के जिला परिवहन अधिकारियों के खिलाफ उचित कानूनी और अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए, जिनकी नाक के नीचे शराब का अवैध कारोबार किया जा रहा है. भ्रष्टाचार को रोकना राज्य का कर्तव्य है जिससे एक सामानांतर अर्थव्यवस्था का विकास हुआ है.”

बिहार में ड्रग्स का सेवन खतरनाक तौर पर बढ़ा

पटना हाईकोर्ट ने 12 अक्टूबर के अपने फैसले में कहा है..“बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद कई लोगों ने इसके विकल्प की तलाश शुरू कर दी. सरकार की सतर्कता न होने के कारण नशीले पदार्थों की आसानी से एंट्री हो गयी. विशेषज्ञों के अनुसार सस्ती दवाओं की लत शराब का विकल्प बन गया. आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 से पहले, ड्रग्स से संबंधित शायद ही कोई मामला था, लेकिन 2015 के बाद से यह खतरनाक रूप से बढ़ गया है. अधिक चिंताजनक प्रवृत्ति यह है कि अधिकांश नशेड़ी 10 वर्ष से कम और 25 वर्ष से कम आयु के हैं. आंकड़े बताते हैं कि शराबबंदी के बाद गांजे चरस/भांग की लत तेजी से बढ़ी है. राज्य सरकार पूरे बिहार में मादक पदार्थों की तस्करी को रोकने में विफल रही है.”

शराबबंदी से लोगों की कार्यक्षमता में कमी आयी

हाईकोर्ट ने 12 अक्टूबर 2022 के अपने फैसले में कहा है “शराबबंदी ने सस्ती जहरीली शराब और नशीले पदार्थों की खपत को न केवल अवैध शराब की समानांतर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, बल्कि शराब से कई और समस्यायें बढ़ी है. ये पाया गया है कि मामूली दिहाड़ी कमाने वाले मजदूरों पर बड़ा जुर्माना लगाया गया जिसे वे वहन नहीं कर सकते थे और उन्हें कर्ज लेना पड़ा जो उन्हें और मौत के मुंह में धकेल देता है. ये दर्ज किया गया है कि अधिकांशतः 18 से 35 वर्ष के बीच के लोग शराब के आदी हैं. इस उम्र के लोग ही समाज के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं. लेकिन अवैध शराब के कारण इस उम्र के लोगों के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, नैतिक और बौद्धिक विकास पर काफी दुष्प्रभाव पड़ा है. इससे बिहार को मानव क्षमता का काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस तरह के दुरुपयोग के खतरे से निपटने के लिए राज्य ने कोई उपाय नहीं किए हैं.”

शराब के पूरे रैकेट का पर्दाफाश 

पटना हाईकोर्ट ने अपने 20 पन्ने के फैसले में बिहार में न सिर्फ पुलिस औऱ उत्पाद विभाग बल्कि ट्रांसपोर्ट से लेकर टैक्स वसूलने वालों की सारी कलई खोल दी है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सरकार के जीएसटी वसूलने वाले अधिकारियों की पोल खोली है. हाईकोर्ट ने कई उदाहरण देते हुए कहा है कि बिहार सरकार के अधिकारियों ने शराब ढ़ोने वाली गाड़ियों के नाम पर फर्जी ई बिल जारी किये. जि गाडियों को अवैध शराब लाने के कारण जब्त कर लिया गया, उनकी जब्ती के बाद भी उस गाड़ी के नंबर पर ई बिल जारी कर दिया गया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है..“आश्चर्यजनक रूप से वाहन की जब्ती के बाद ई-वे बिल बनाये गये. इस तरह की धोखाधड़ी राज्य कर अधिकारियों, आबकारी अधिकारियों या पुलिस अधिकारियों के सहयोग से ही खेली जा सकती है.”

शराब तस्करी में ट्रांसपोर्ट विभाग भी शामिल

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है “इस न्यायालय द्वारा यह देखा गया है कि शराब तस्कर नकली नंबर प्लेट वाली गाड़ी का उपयोग कर रहे हैं. उनके खिलाफ न सिर्फ शराब तस्करी बल्कि नकली नंबर प्लेट का उपयोग करने के लिए धारा 467 आईपीसी के तहत एक अलग मामला दर्ज करने की आवश्यकता होती है. इस कोर्ट ने राज्य और उसके अधिकारियों को जब्त किए गए वाहनों का विवरण देने के साथ साथ उन सभी वाहनों का विवरण देने का निर्देश दिया था जो बिहार राज्य में प्रवेश कर चुके हैं और जो बिहार राज्य के अंदर चल रहे हैं. सरकार को कहा गया था कि वह ऐसे वाहनों की आगे से उपयोग न हो इसका उपाय बताये. लेकिन आज तक इस संबंध में कोई उपाय या प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है और इस न्यायालय को सूचित नहीं किया गया है.”

पटना हाईकोर्ट के इस आदेश में कई उदाहरण के साथ बिहार में शराब तस्करी के रैकेट की सारी पोल खोली गयी है. जहरीली शराब के कारण लोगों की जिंदगी पर गंभीर खतरे को हाईकोर्ट ने दो महीने पहले ही जाहिर किया था. हाईकोर्ट ने एक-एक कर बताया कि कैसे पुलिस अधिकारी, उत्पाद विभाग, ट्रांसपोर्ट विभाग औऱ जीएसटी अधिकारी शराब के खेल से मोटा माल कमा रहे हैं. लेकिऩ नीतीश कुमार औऱ उनकी सरकार सोयी रही. शायद कोर्ट की अवमानना का डर नहीं होता तो नीतीश कुमार उसे भी पियक्कड़ औऱ शराबियों का साथी करार देते।