बिहार में कई ऐसी मिठाईयां हैं, जो स्थानीय स्तर पर बहुत ही लोकप्रिय हैं लेकिन यह हर जगह पर उपलब्ध नहीं है। राज्य के तीन अलग-अलग क्षेत्रों की प्रसिद्ध मिठाइयों को अब विश्वभर में अलग पहचान मिलेगी।

ऐसी ही मिठाईयों में शामिल है, भोजपुर के उदवंतनगर के खुरमा, गया का तिलकुट और सीतामढ़ी का स्वादिष्ट बालूशाही, जिन्हें अब दुनिया भर में पहचान दिलाने का काम तेजी से शुरू हो गया है। अब इन्हें जीआई टैग दिलाने की पहल होगी और इसके लिए नाबार्ड ने पहल शुरू कर दी है।

इसके पहले इन मिठाइयों की विशेषताओं और उनके श्रोत की राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) लेगा और इन उत्पादों के लिए जीआई टैग की मांग करने वाले निर्माताओं/ उत्पादक संघों की सुविधा के लिए प्रक्रिया शुरू करेगा।

इस प्रक्रिया के बाद उत्पादकों को इसके लिए आवेदन करने कहा जाएगा। बता दें कि गया का तिलकुट काफी प्रसिद्ध है। कुछ ऐसा ही प्रसिद्ध भोजपुर का खुरमा भी है और सीतामढ़ी का बालूसाही भी।

इन तीन मिठाइयों को अगर जीआई का टैग मिल जाता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि इसे बेचने वाले लोगों की आमदनी बढ़ेगी साथ ही इसका उत्पादन भी बढ़ेगा। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह इसका विश्व के बाजारों में एक अलग पहचान बनाना है।

इन मिठाइयों का विश्व में कहीं भी किसी के भी द्वारा मार्केटिंग किया जाएगा तो वह बिहार के संबंधित जिलों के ही नाम से जाना जाएगा लेकिन जीआई टैग नहीं होने के कारण इनकी पहचान का प्रमाणीकरण नहीं हो पाया है। लिहाजा इनकी मांग होने के बावजूद विदेशों में बिक्री नहीं हो पाती है।

जीआई टैग मिलने के बाद दूसरे कोई भी राज्य या देश का दावा इन मिठाइयों पर नहीं हो सकेगा। इस तरह अगर इन मिठाइयों को जीआई टैग मिला तो बिहार के कुल आठ उत्पादों को जीआई टैग मिलेगा।

बता दें कि इससे पहले बिहार के मखाना, कतरनी चावल, जर्दालु आम, शाही लीची और मगही पान को जीआई टैग मिल चुका है। नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि नाबार्ड इन मिठाइयों को जीआई टैग दिलाने में मदद करेगा। इसका उद्देश्य है कि इसका लाभ उत्पादकों को मिले। जल्द ही प्रक्रिया पूरी कर जीआई टैग के लिए उत्पादकों से आवेदन कराया जायेगा।

उन्होंने कहा, “हम खुरमा’, तिलकुट’ और ‘बालू शाही’ के लिए जीआई टैग की मांग करने वाले निर्माता/निर्माता संघों को सहायता प्रदान कर रहे हैं।” कुमार ने कहा कि इसके लिए निर्माता जल्द ही इन उत्पादों के लिए जीआई रजिस्ट्री (चेन्नई) में आवेदन करेंगे। डॉ. सुनील कुमार ने बताया कि भोजपुर का खुरमा भी विदेशियों को बहुत पसंद आता है, यह अंदर से मिठास के साथ-साथ इतना रसीला होता है कि स्वाद जीभ से मन तक को संतुष्ट कर देने वाला होता है।

उन्होंने कहा कि यही हाल गया के प्रसिद्ध तिलकुट का भी है, तिल और गुड़ से बना अनोखा तिलकुट देश के बाहर भी काफी लोकप्रिय है। वहीं, सीतामढ़ी के रून्नीसैदपुर इलाके की स्वादिष्ट मिठाई बालूशाही भी देश में बहुत लोकप्रिय है।

उन्होंने बताया कि नाबार्ड ने इससे पहले बिहार से हाल ही में जीआई रजिस्ट्री को तीन आवेदन दिए हैं, जिनमें हाजीपुर के प्रसिद्ध चिनिया किस्म के केले, नालंदा की लोकप्रिय बावन बूटी साड़ी और गया के पत्थरकट्टी स्टोन क्राफ्ट के लिए जीआई टैग की मांग की गई है।

मुख्य महाप्रबंधक ने बताया कि जीआई टैग का सर्टिफिकेट मिलने के बाद उसका प्रयोग एक ही समुदाय कर सकता है। जैसे ओडिशा के रसगुल्ला के लिए जो लोगो मिला, उसका इस्तेमाल रसगुल्ले के डिब्बे पर सिर्फ ओडिशा के लोग कर सकते हैं।

जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है। हालांकि इसे बाद में रिन्यू करा सकते हैं। जीआई टैग मिलने से उत्पाद का मूल्य और उससे जुड़े लोगों की अहमियत बढ़ जाती है। नकली प्रॉडक्ट को रोकने में मदद मिलती है और संबंधित लोगों को इससे आर्थिक फायदा भी होता है।