म्यांमार (Myanmar) की अपदस्थ नेता आंग सान सू ची (Aung San Suu Kyi) को लोगों को उकसाने और कोरोना नियमों का उल्लंघन (Coronavirus Restrictions) करने का दोषी करार देते हुए सोमवार को चार साल कैद की सजा सुनाई. राजधानी की एक स्पेशल कोर्ट ने नोबेल पुरस्कार विजेता (Nobel Laureate) को इस मामले में दोषी पाया है.

सू ची को हो सकती है 100 साल की जेल
देश की सत्ता पर एक फरवरी को सेना के कब्जा के बाद से, 76 वर्षीय सू ची पर चलाए जा रहे कई मुकदमों में से पहले मामले में यह सजा मिली है. सैन्य तख्तापलट ने उनकी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी की सरकार को अपना पांच साल का दूसरा कार्यकाल शुरू करने से रोक दिया था. अगले सप्ताह की शुरुआत में अन्य आरोपों के सिलसिले में अपदस्थ नेता को फैसले का सामना करना पड़ सकता है.

अगर वह सभी मामलों में दोषी पाई जाती हैं, तो उन्हें 100 साल से ज्यादा की जेल की सजा हो सकती है. लॉ ऑफिसर ने कहा कि कोर्ट ने सोमवार को यह साफ नहीं किया कि सू ची को इसके लिए जेल भेजा जाएगा या उन्हें नजरबंद रखा जाएगा. लोकतंत्र के लिए अपने लंबे संघर्ष में, उन्होंने 1989 से शुरू करते हुए अब तक 15 साल तक नजरबंदी में बिताए हैं.

फैसले को खिलाफ गुस्सा
अधिकारी ने यह भी कहा कि सू ची को उकसाने के मामले में हिरासत में पहले से ही बिताए गए 10 महीने का समय सजा से कम किया जाएगा, जिससे उन्हें उस आरोप में केवल एक साल और दो महीने की सजा काटनी होगी. कोरोना वायरस प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के आरोप में इस तरह की कोई कमी नहीं की जाएगी.

सजा के ऐलान के बाद लोगों ने इस पर अपना गुस्सा भी जाहिर किया. म्यांमार में मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की पूर्व विशेष अधिकारी यांगी ली ने आरोपों के साथ-साथ फैसले को बकवास बताया. उन्होंने कहा कि देश में कोई भी मुकदमा गलत है क्योंकि न्यायपालिका सैन्य-स्थापित सरकार के काबू में है.

अधिकार समूहों ने भी फैसले की निंदा की है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे म्यांमार में सभी विरोधों को खत्म करने और स्वतंत्रता का दम घोंटने के लिए सेना के मकसद का ताजा उदाहरण बताया है. इसके अलावा म्यांमार के सैन्य नेताओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखे पड़ोसी चीन ने सू ची के खिलाफ फैसले की आलोचना करने से इनकार कर दिया.

चुनावी कैंपेन से जुड़ा है मुकदमा
सू ची के खिलाफ उकसावे का यह मामला, उनकी पार्टी के फेसबुक पेज पर पोस्ट किए गए बयान से जुड़ा हुआ है, जब कि उन्हें और पार्टी के अन्य नेताओं को सेना ने पहले ही हिरासत में ले लिया था. कोरोना वायरस प्रतिबंध उल्लंघन का आरोप पिछले साल नवंबर में चुनाव से पहले एक कैंपेन में उनकी मौजूदगी से जुड़ा था. चुनाव में उनकी पार्टी ने भारी जीत हासिल की थी.

सेना, जिसकी सहयोगी पार्टी चुनाव में कई सीटें हार गई, उसने बड़े पैमाने पर मतदान में धोखाधड़ी का आरोप लगाया था, लेकिन स्वतंत्र चुनाव पर्यवेक्षकों ने किसी भी बड़ी अनियमितता की बात नहीं कही. सू ची के मुकदमे की सुनवाई मीडिया और दर्शकों के लिए बंद है. उनके वकीलों, जो कार्यवाही पर जानकारी का एकमात्र सोर्स हैं, उन्हें अक्टूबर में जानकारी जारी करने से मना करने के आदेश दिए गए थे.

कानूनी अधिकारी ने कहा कि बचाव पक्ष के वकील आने वाले दिनों में सू ची और सोमवार को दोषी ठहराए गए दो सहयोगियों के लिए भी अपील दायर कर सकते हैं.

चुनाव लड़ने से रोकनी की साजिश?
सू ची के खिलाफ मामलों को व्यापक रूप से उन्हें बदनाम करने और अगले चुनाव में उनके भाग लेने से रोकने की साजिश के रूप में देखा जा रहा है. देश का संविधान किसी को भी दोषी ठहराकर जेल भेजे जाने के बाद उच्च पद हासिल करने या जन प्रतिनिधि बनने से रोकता है. सैन्य तख्तापलट के 10 महीने बाद भी सैन्य शासन का मजबूती से विरोध जारी है और इस फैसले से तनाव और भी बढ़ सकता है.

सैन्य सरकार के खिलाफ रविवार को विरोध मार्च निकाला गया और सू ची और उनकी सरकार के हिरासत में लिए गए अन्य सदस्यों की रिहाई की मांग की गई. अपुष्ट खबरों के मुताबिक सेना का एक ट्रक यांगून में एक मार्च में शामिल 30 लोगों के बीच जानबूझकर घुस गया और इस घटना में कम से कम तीन प्रदर्शनकारी मारे गए थे.