भारत में हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन धनतेरस (Dhanteras Festival) का त्योहार मनाया जाता है, इस दिन से दिवाली ( Diwali ) के 5 दिवसीय त्योहार का आगाज भी होता है। आमतौर पर धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) होती हैं और उसके बाद बड़ी दिवाली आती है।

लेकिन इस बार तिथियों में हेरफेर के चलते धनतेरस के अगले दिन ही बड़ी दिवाली का त्योहार मनाया जाएगा। इस साल धनतेरस 23 अक्टूबर और दिवाली 24 अक्टूबर को है। क्या आप जानते हैं धनतेरस क्यों मनाई जाती है? अगर नहीं तो आज की इस खबर में हम आपको बताएंगे, धनतेरस का त्योहार क्यों मनाया जाता है। दरअसल हिन्दू शास्त्रों के मुताबिक इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था।

इसलिए इस त्योहार का नाम धनतेरस रखा गया। बता दें कि समुद्र मंथन के वक्त भगवान धन्वंतरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। यही कारण है कि धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। आप बर्तन नहीं खरीदना चाहते हैं तो आप कोई अन्य समान भी खरीद सकते हैं। इस दिन सामान खरीदना बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है।

बताते चलें कि धनतेरस के शुभ अवसर पर भगवान धन्वंतरि (Lord Dhanvantari) के साथ माता लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) और भगवान कुबेर (Lord Kuber) की भी पूजा की जाती है, जिससे हम सभी के घर में धन, सुख और समृद्धि का वास होता है।

अब बात करते हैं कि धनतेरस का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसको मनाने की शुरुआत कब से हुई थी? दरअसल समुद्र मंथन (Samudra Manthana) के दौरान कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश (Amrit Kalash) लेकर प्रकट हुए थे। हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु ने ही धन्वंतरि का अवतार लिया था, यह अवतार उन्होंने सृष्टि में चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) का विस्तार करने के लिए लिया था।

शास्त्रों के मुताबिक भगवान धनवंतरी देवताओं के वैद्य हैं, इनकी पूजा करने से आरोग्य सुख यानी स्वास्थ्य लाभ होता है। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने की शुभ घड़ी को मनाने के लिए ही हर साल कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी भी प्रकट हुई थीं, इसलिए धनतेरस के दो दिन बाद दीपावली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

जैसा की हम सभी जानते हैं, हिन्दू शास्त्रों (Hindu Scriptures) और मान्यताओं में किसी भी त्यौहार या घटनाक्रम के कई अलग पहलू देखें जाते हैं, ठीक इसी तरह धनतेरस से जुड़ी एक और मान्यता यह है कि देवताओं को दैत्यों के राजा बलि (King Mahabali) के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए।

असुरों के गुरु शुक्राचार्य (Shukracharya) ने वामन रूप में आये श्री हरी विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन अगर कुछ भी मांगे तो उन्हें इंकार कर देना। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। राजा बलि द्वारा वामन को दान देने से रोकने के लिए शुक्राचार्य उनके कमंडल में लघु रूप (Short Form) धारण करके प्रवेश कर गए।

शुक्राचार्य कि ये युक्ति उन्हीं पर भारी पड़ गयी, वामन अवतार में आये श्री हरी विष्णु ने अपने हाथ में पकड़े हुए कुशा को कमंडल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी। दर्द से छटपटाकर शुक्राचार्य को कमंडल से निकलना पड़ा और राजा बलि ने वामन को 3 पग भूमि दान कर दी।

इसके बाद भगवान वामन ने 1 पग में पूरी पृथ्वी (Whole Earth) को नाप लिया और दूसरे पग में पूरा ब्रह्मांड (Whole Universe) सिमट गया, अब भी वामन का तीसरा पग बाकी था और असुरों के राजा महाबली के पास वामन को देने के लिए कुछ भी नहीं बचा था।

लेकिन वह अपनी बात के पक्के थे इसलिए तीसरे पग में उन्होंने वामन के आगे अपना सिर झुका लिया और इस तरह देवताओं को राजा बलि के भय से छुटकारा मिला। साथ ही असुरों के राजा ने देवताओं से जो जमीन हथियाई थी, उन्हें उससे कई गुना ज्यादा जमीन वापस कर दी गयी थी। कई लोग असुरों पर देवताओं की जीत को (Dhanteras 2022) मनाने के लिए भी धनतेरस का त्योहार मनाते हैं।

INPUT : HARIBHUMI