छत्तीसगढ़ के कोंडगांव में सिंह परिवार में 1 मई 1977 को एक लड़के का जन्म हुआ. घर में खुशियां मनाई गईं. परवरिश भी वैसे ही शुरू हुई, जैसे कि एक लड़के की जाती है, लेकिन उस लड़के ने जब से होश संभाला खुद को वो मानने से इनकार कर दिया, जो घर और समाज वाले उसे मानते थे. लोग उसे लड़का कहते थे, लेकिन उसने खुद को लड़की ही माना. कुछ साल तक काफी परेशान रहा. फिर उसने कुछ ऐसा किया, जिससे अब उसकी समाज में अलग पहचान है.

तृतीय लिंग कल्याण बोर्ड, छत्तीसगढ़ शासन की सदस्य विद्या राजपूत कहती हैं- “पहली बार छत्तीसगढ़ के शासकीय कैलेंडर में ट्रांसजेंडर पुलिस की तस्वीर छपी है. खाकी वर्दी में जनसेवा के लिए तैयार ट्रांस जेंडर पुलिस ग्रुप में 12 लोग तस्वीर में दिखाई दे रहे हैं. हमारी कम्युनिटी के लिए गर्व की बात है कि हमें राज्य के शासकीय कैलेंडर में स्थान मिला है. कैलेंडर में जब-जब लोग हमें देखेंगे, तब-तब समाज में सकारात्मक सोच सामने आएगी.”  दरअसल खुद की पहचान बनाने के लिए विद्या राजपूत ने घर-परिवार, समाज से लेकर देश तक काफी लंबा संघर्ष किया है.

अब सिर्फ बात नहीं होती है विद्या राजपूत न्यूज 18 से बातचीत में कहती हैं- ‘तब सुकून मिलता है, जब समाज में जेंडर इक्वेलिटी के लिए कुछ काम भी हो रहे हैं, सिर्फ बात ही नहीं होती है. एलजीबीटीक्यू अब खुलकर सामने भी आने लगे हैं. सरकारी विभाग में नौकरी के साथ ही सामुदायिक भवन, मकान, जैसे कुछ शासकीय लाभ भी मिलने लगे हैं, लेकिन अब भी बराबरी के लिए बहुत कुछ करना है, कर रहे हैं.’

विद्या कहती हैं- ‘मां की कोख से मैंने जन्म भले ही 1 मई 1977 को लिया, लेकिन खुद के धरती पर होने का अहसास नहीं कर पाई. मुझे खुद के होने का अहसास तब हुआ, जब मैंने खुद से खुद को पैदा किया. मैंने उस जिंदगी को जीना शुरू किया, जिसे मैं अपने शरीर में महसूस करती थी. मां की कोख से तो मैं लड़का पैदा हुई, जिसका नाम विकास राजपूत था. वो विकास जो 10 साल की उम्र से ही खुद की उस पहचान से इनकार करने लगा था, जो परिवार और समाज वालों की नजर में उसकी थी.’

मैंने खुद को लड़की मान लिया छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के फरसगांव में जन्मी विद्या कहती हैं- “मेरे घर और समाज वालों की नजर में मेरी चाल लोगों को खटकती थी. घर वाले टोकते थे, मोहल्ले वाले चिढ़ाते थे. लेकिन अंदर ही अंदर मैंने खुद को लड़की मान ही लिया था. ऐसा नहीं कि मैंने परिवार वालों से बात करने की कोशिश नहीं की. कई दफे बात की, लेकिन कोई माना नहीं. एक बार के लिए मन में आया कि क्यों न जिंदगी को ही खत्म कर लूं. काफी उलझनों के बाद मैंने ठान लिया कि मैं अपना सेक्स चेंज करवाऊंगी, आत्मा से लड़की हूं और अब शरीर से भी लड़की ही रहूंगी.”

मैंने अपने शरीर को पाया विद्या कहती हैं- ‘जब मैं उस (सेक्स चेंज) ऑपरेशन में थी तब मेरे साथ कोई नहीं था. बहुत दर्द महसूस कर रही थी, लेकिन उस दर्द के ऊपर एक खुशी थी कि मैंने अपने शरीर को पाया. अब तक मैं दूसरे के शरीर में सफर कर रही थी, अब जब मैंने अपना चोला बदला है, मैंने लड़के का लिबास उतारकर लड़कियों का लिबास पहना, जो मुझे बचपन से पसंद था. उस ऑपरेशन के बाद मैं अपने आप से मिली. 2007 में रायपुर में कुछ लड़कों ने मेरी एक्टिविटी पर कमेंट किया, मैंने भी उन्हें जवाब दिया. उन्होंने मिलकर मुझसे मारपीट की. मेरी मां सरोज सिंह को बहुत तकलीफ हुई. मुझे लेकर उनकी चिंता इतनी बढ़ी कि वो मानसिक रोगी हो गईं. 2009 में वो हम सबका साथ छोड़ दुनिया से चली गईं.

विद्या बातचीत में कहती हैं- ‘मैंने जिंदगी में काफी स्ट्रगल किया, समाज से परिवार से लोहा लिया. तब मुझे मेरी जिंदगी मिली है. मैं अलग हूं, मैं खुशनसीब हूं, क्योंकि मैं वो हूं, जो पुरुष और स्त्री दोनों की जिंदगी जी है. शुरू में परिवार वालों ने मेरा साथ कभी नहीं दिया, लेकिन अब मेरी बहन और उसके बच्चे खुलकर मेरे साथ हैं, वो कहते हैं कि हमें तुम पर गर्व है.’

Input: news 18