सीतामढ़ी | वर्ल्ड क्लास स्टेशन का दर्जा प्राप्त सीतामढ़ी जंक्शन का कायाकल्प सही मायने में कब से शुरू होगा ? रेलवे कब अपना काम करेगी ? यह प्रश्न करते हुए केन्द्रीय रेलवे रेल यात्री संघ सह कन्फेडेरशन ऑफ ऑल इण्डिया ट्रेडर्स (कैट) के जिलाध्यक्ष राजेश कुमार सुन्दरका ने कहते है कि सौ से ज्यादा संख्या में पत्र समस्तीपुर रेल मण्डल प्रबन्धक, पूर्व मध्य रेलवे हाजीपुर जोन व रेल मंत्रालय, भारत सरकार को लिखने एवं विभागीय पदाधिकारियों से मुलाकात होने के बावजूद माता सीता की जन्मभूमि सीतामढ़ी के लिए न ही उचित प्रकार से संज्ञान लिया जा रहा और न ही हमें सही जवाब मिलता है।

कहा कि एक राहत की खबर जरूर आई है। सीतामढ़ी में रेलवे स्टेशन के विकास के लिए अमृत भारत स्टेशन के तहत 262 करोड़ अलॉट किए गए हैं। इसका हम सरकार को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। लेकिन, योजना कब पूरी होगी, इसकी बात भी होनी चाहिए। लेट लतीफे का सीतामढ़ी में बन रहा आरओबी इसका ज्वलंत उदाहरण है।

जिलाध्यक्ष श्री सुन्दरका ने कहा कि रेलवे द्वारा सीतामढ़ी हमेशा उपेक्षा का शिकार होता रहा है। स्पीड की बात हो या लगातार ट्रेनों के लेट चलने की बात हो। मुजफ्फरपुर – दरभंगा की लम्बी दूरी की ट्रेन को सीतामढ़ी से चलाने के बारे में या अयोध्या और पटना जंक्शन से कनेक्टिविटी के बारे में हो, सभी विषयों पर रेलवे पूरी तरह मौन साधी हुई हैं।

भारत सरकार द्वारा पिछले वर्ष तिरंगा को लेकर मुहिम चलाई गई थी। सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन पर 100 फिट ऊंचे तिरंगा लगाने की पुरानी मांग भी पूरी नहीं हुई। श्री सुन्दरका ने कहा कि सीतामढ़ी से रक्सौल, दरभंगा, मुजफ्फरपुर और पाटलिपुत्र के लिए सीमित ट्रेनें हैं। बार – बार ध्यान आकृष्ट करने पर भी ट्रेनों का परिचालन सही ढ़ंग से नहीं किया जा रहा है।

ट्रेन के परिचालन का समय इस प्रकार होना चाहिए कि यात्री कार्यालय, अस्पताल, व्यवसाय, शैक्षणिक कार्य के लिए ऑफिस समय से पहुंचे और वापसी का समय इस प्रकार हो कि यात्री काम करके लौट सके। रेलवे सात घण्टे में चार ट्रेन चलाती है तो अगले सत्रह घण्टे में एक, वैसे ही ट्रेन के पहुँचने के बाद वापसी के लिए एक घण्टे का समय रहता है। वहीं बस से जो सफर तीन घण्टे में पूरा किया जाता है, उसे हमारी ट्रेन साढ़े छह घण्टे में पूरा करती है, जबकि ट्रैफिक की कोई समस्या नहीं है।

केन्द्रीय रेलवे रेल यात्री संघ सह कैट के जिलाध्यक्ष राजेश कुमार सुन्दरका ने कहा कि रेलवे को हमेशा यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि मांग के लिए जनता द्वारा संघर्ष ही किया जाए। फिलहाल रेलवे अविलंब हमारी बुनियादी मांगों को पूरा करें, जिसमें कोष और संसाधन से ज्यादा सीतामढ़ी की जरूरत के अनुसार कार्यों को करने के लिए सही निर्णय लेने की जरुरत है।

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