औरंगाबाद का देव सूर्य मंदिर त्रेताकालीन है. यह कोणार्क सूर्य मंदिर से भी पहले बना है. कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ है, यानी देव सूर्य मंदिर कोणार्क सूर्य मंदिर से भी प्राचीन है. ये बातें चित्रकुट धाम के तुलसी पीठाधीश्वर जगत गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ने भगवान भास्कर की पावन पवित्र नगरी देव में आयोजित श्री सूर्य महायज्ञ में प्रवचन के दौरान कही.

उन्होंने कहा कि देव में सूर्य नारायण का दर्शन कर मन प्रसन्न हो गया. जब मंदिर में दर्शन कर रहे थे उस वक्त प्रेरणा लगी कि यह मंदिर भगवान श्रीराम द्वारा बनाया गया है. मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. उन्होंने बताया कि त्रेता युग में जब रावण का वध करने के पश्चात भगवान राम राजा बने, तो माता सीता के साथ मिथिला आये थे.

मिथिला में उनका भव्य स्वागत सत्कार हुआ था. इसी दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने मिथिला जाने के क्रम में यहां रुक कर भगवान सूर्य के इस मंदिर का निर्माण कराया था. हालांकि, इसके बाद कई लोगों ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, लेकिन यह मंदिर स्वयं भगवान श्रीराम द्वारा ही निर्मित है.

उन्होंने कहा कि भगवान राम को सूर्य नारायण बहुत प्रिय है. क्योंकि, भगवान राम का जन्म सूर्यवंशी कुल में हुआ है. सूर्य नारायण को मित्र कहा गया है. वे मिलते-मिलते भी रक्षा कर देते है. यजुर्वेद वेद में उल्लेखित है सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च यानी सूर्य को आत्मा माना गया है.

सूर्य को रवि भी कहते है. भगवान सूर्य नारायण बेहद उदार है. किसी के साथ भेद-भाव नहीं करते है. सब को एक समान प्रकाश देते है. सभी इनकी स्तुति करते है. भगवान सूर्य सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं. रथ में सर्पों की डोरी लगी हुई है. इनके सारथी अरुण है.

भगवान सूर्य को देवताओं का नेत्र भी कहा गया है. उन्होंने कहा कि सूर्य नारायण को भगवान राम कितने प्रिय है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब भगवान राम का जन्म हुआ तो सूर्य नारायण ने कहा कि मुझे एक दिन की छुट्टी चाहिए.

इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि अगर आप छुट्टी ले लेंगे तो प्रकाश कहां से मिलेगा. इस पर सूर्य नारायण ने कहा कि हमारे यहां उत्सव हो रहा है. इसलिए हमें छुट्टी चाहिए. ब्रह्मा जी ने कहा कि ऐसा करिये आप वहां बैठे-बैठे ही छुट्टी ले लीजिएगा. सूर्य नारायण आये राघव जी का जन्म हुआ और इसके बाद सूर्य नारायण भूल गये.

एक महीने तक भगवान सूर्य अस्ताचल नहीं हुए. पूरे एक महीने तक दोपहर बना रहा और सूर्य नारायण वहीं बैठे रहे. गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोई, रथ समेत रवि थाकेउ निसा कवन विधि होई.

सूर्य नारायण वहीं बैठ कर भगवान का उत्सव देखते रहे. भगवान सूर्य ने अपने अंश सुग्रीव को भेजा की जाओ रामजी की सेवा करो. जगत गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि सूर्य सबका पालन करते है. वे सभी लोगों को अच्छे कर्म के लिए प्रेरित करते है. कभी बुरा नहीं करने देते है.

जब हनुमान जी महाराज प्रकट हुए तो उन्होंने लाल फल समझ कर सूर्य नारायण को अपने मुंह में भर लिया. जब देवताओं ने प्रार्थना की तब जाकर भगवान सूर्य को मुक्त किया. सूर्य नारायण ने कहा कि हनुमान जी जब आपका उपवीत होगा तब मैं आपको गायत्री मंत्र की दीक्षा दूंगा.

जब हनुमान जी का उपवीत हुआ तब भगवान सूर्य नारायण ने उन्हें गायत्री मंत्र की दीक्षा दी. उन्होंने बताया कि जब हनुमान जी महाराज जब भगवान सूर्य से पढ़ने गये तब सूर्य नारायण को प्रणाम किया. हनुमान जी को देखते ही सूर्यनारायण सोच में पड़ गये. कि बच्चे थे तब तो मुंह में भर लिया था.

अब बड़े हो गये है तो क्या करेंगे. तब हनुमान जी ने कहा कि सूर्य नारायण मैं आपसे व्याकरण पढ़ने आया हूं. सूर्य नारायण ने कहा कि मेरे पास समय नहीं है. हनुमान जी के काफी जतन के बाद सूर्य नारायण तैयार हुए और हनुमान जी को शिक्षा देनी प्रारंभ की. बेहद अल्प समय में ही हनुमान जी ने सारी व्याकरण की शिक्षा ग्रहण कर ली.

यहीं से हुई है छठ की शुरूआत

महर्षि कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का जन्म हुआ था. इसी देव स्थान से हम सभी ने छठ पर्व प्रारंभ किया. सूर्यापासना के महापर्व छठ की शुरूआत देव से ही हुई है. वर्षों से साल में दो बार कार्तिक एवं चैत्र माह में छठ महापर्व मनाया जाता है. छठ मईया सबकी मनोकामना पूरी करती है. यह भूमि अत्यंत ऐतिहासिक व पवित्र है.

देव में चल रहे श्री सूर्य महायज्ञ में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. गुरुवार को यज्ञ में भाग लेने के लिए करीब दो लाख श्रद्धालु पहुंचे. इस दौरान बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं ने यज्ञ मंडप का परिक्रमा किया. जगतगुरु रामभद्राचार्य को सुनने के लिए पूरे दिन श्रद्धालु देव में जमे रहे. जब जगतगुरु का आगमन हुआ तो हेलीकॉप्टर से पूरे देव नगरी में पुष्प वर्षा की गयी.

वैसे सीतामढ़ी से ही उनका हेलीकॉप्टर से आगमन हुआ. सबसे पहले रामभद्राचार्य पौराणिक सूर्य कुंड तालाब पहुंचे और वहां से जल स्पर्श कर सीधे भगवान सूर्य के मंदिर में गये और विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की. मंदिर से यज्ञ स्थल पहुंचने के दौरान पूरी राह श्रद्धालुओं ने दिल खोलकर अभिनंदन किया. भगवान के जयघोष से पूरा देव नगर गूंजायमान हो गया.

INPUT : PRABHAT KHABAR