बिहार शिक्षा विभाग के स्तर से बच्चों के हित में करीब दर्जन योजनाएं चलाई जा रही है। इन योजनाओं में एक है पोशाक योजना। इसके तहत कक्षावार और कोटिवार बच्चों को पोशाक की राशि उपलब्ध कराई जाती है। इस बीच, शिक्षा विभाग ने इस योजना को लेकर एक अहम निर्णय लिया है।

यह निर्णय बच्चों और उनके अभिभावकों के हित में है। हालांकि यह निर्णय उन चंद अभिभावकों को जरूर नागवार लगेगा, जो पोशाक राशि प्राप्त कर अपने बच्चों का पोशाक नहीं सिला पाते थे। वे पोशाक की राशि किसी अन्य मद में खर्च कर लेते थे।

दरअसल, विभाग ने अब राशि देने के बजाए पोशाक ही उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। पोशाक योजना की शुरुआत सीएम नीतीश कुमार की देन है। यह योजना वर्ष 2018 में शुरू की गई थी। इस योजना को लागू करने के पीछे सरकार की बेहतर और दूरगामी सोच थी, लेकिन वह धरातल पर शत प्रतिशत लागू नहीं हो सकी।

सरकार की सोच थी कि सरकारी स्कूल के बच्चे भी ड्रेस में स्कूल में आए। इस क्रम में यह बात सामने आई कि ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे आज भी आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आते है और उनके अभिभावकों के लिए ड्रेस सिलाना कठिन होगा।

यानी अभिभावकों पर यह एक अलग आर्थिक बोझ पड़ेगा। इन सारी बातों को सोचकर अभिभावकों को अपने बच्चों का ड्रेस सिलाने में आर्थिक मदद करने के लिए सरकार यह योजना लागू की थी। आज भी स्कूलों में 50 फीसदी बच्चे भी ड्रेस में नहीं आते हैं, जबकि उन्हें ड्रेस का पैसा मिला हुआ है।

ऐसा हाल विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में देखा जाता है। बच्चे ड्रेस में आए, की चिंता न तो शिक्षक को होती है और अभिभावक ही ध्यान देते हैं। बहुत सारे अभिभावक तो पोशाक की राशि की उपयोगिता भी नहीं समझते है और पैसे को दूसरे मद में खर्च कर लेते हैं।

नकद राशि देने का प्रावधान होने के कारण इसमें व्यापक पैमाने पर गड़बड़ी भी होती है। यह किसी से छुपा नहीं है। इस गड़बड़ी में जिले में अबतक न जाने कितने प्रधान शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई भी हो चुकी है। बहरहाल, अब विभाग नए सत्र से ड्रेस ही उपलब्ध कराने का निर्णय ली है।

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